पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/५८९

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५५४ काव्य-निर्णय दासजी ने यमक के संस्कृतानुसार छह-भेद,-उत्तम यमक, भुक्त पद- ग्राह्य यमक, निरर्थक-शब्दावृत्ति रूप यमक, सार्थक-निरर्थक शब्दावृत्ति रूप यमक, सार्थक शब्दावृत्ति रूप यमक-श्रादि माने हैं और उनके उदाहरण भी दिये है। यथा- प्रथम जॅमक को उदाहरन जथा- लोनों सुख-माँनि, सुख' माँनि लखि लोचनॅन, नीरज' • लजात जलजातँन बिहारि गौ। वाहो जी लगाइ करि, लीनों जी लगाइ करि, मति मोहिनी - सी मोहिनी - सी उर- डारि गौ ।। लागें' पलकौ न. पल को न बिसरै - री, विसबासी बास में ते बास' में ते बिष गारि गौ । माँनि आँनि मेरी आँनि मेरे ढिग वाकों तू, काहू बरजौ - री बरजोरी मोहि मारि गौ ।।* ___ दुतीय जैमक को उदाहरण जथा - चलँन कहों मैं लाल, राबरे चलँन' की चाल", आँच वा के आँचर' 'सों क्यों हूँ न सुधारेगी। बारिजात नेन बरिजातँन सहैगो निज, बारि-जात-ने नँन सों क्यों" ह न निबारैगी । 'दास' जू बसंत - सुधि अंगनाँ सँभारैगी तो, अंगना सँभारंगी'। ह अंगनास भारैगी। करहति डारै सुधि देखि - देखि किंसुक को, कर - हति डारै हियो कर - हति डारंगी ।। पा०-१. (का०) (प्र०) (स ० पु० प्र०) सुखमा निररित्न लोचनॅन। २. (३०) नील जलजात जलजात न... (स० पु० प्र०) (र० सा०) नील जलजात नयौ जात नयो हारिंगी । ३. (का०) जील गाइ...। ४. स. पु० प्र०) लावे...। ५. (वे०) बास में विष बगारिगी। ६. (प्र०) मेरो...1 ७. (का०)(प्र०) मेरो... (३०) मरो...। . (का०) (वे) (प्र०) (स.. पु० प्र०) कहूँ...। ६. (का०) (प्र०) चले...१०. (स० पु० प्र०) चलन । ११. (का०) (प्र०) (स० पु० प्र०) अंचल... १२. (का०) (प्र०) के हूँ...। १३. (स० पु० प्र०) बार जातना.... १४. (का०) (३०) (प्र०) के हूँ...। १५. (का०) निहारैगी। १६. (३०) सभारै है है भंगन सँभारेगी।

  • रस-सारांस (भि० दा०) पृ० २१ ।