पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/६१४

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५७६ काव्य-निर्णय श्रागार (घर) कोंन 'सर' = सरोवर (तालाब ), तरुण जनों का मन हरने वाला कोंन 'दार' = स्त्री ( नव योवना ), धरणी को कोंन धर रहा है-पर्वत, हाथी पर सवार कोंन–'सरदार' (विशेष व्यक्ति ) और भवानी (पार्वती) का जनक ( पिता ) कोंन–'परबत-सरदार' हिमालय इत्यादि ।" अथ एकानेकोत्तर लच्छन जथा- बौहौत भाँति के प्रस्न कौ, उत्तर-'एक' बखाँन । 'एक-अनेकोत्तर' वहीं, अनेकार्थ-बल जॉन' । अस्य उदाहरन जथा- बरा'-जरौ, घोरा-अरौ, पॉन-सरौ क्यों नारि। हितू-फिरौ क्यों द्वार ते, "हुतो न फेरन हारि"। अस्य तिलक "अर्थात् कोऊ फेरनवारौ नाहि हुतो, यै सब को उत्तर दियौ।" वि०-“यहाँ भी दासजी ने अनेक प्रश्नों-बड़ा क्यों जला, घोड़ा क्यों अड़ा, पान क्यों सड़ा और हितू ( रिस्तेदार ) द्वार से क्यों फिरा-श्रादि चारों प्रश्नों का स्त्री-द्वारा एक-ही उत्तर-कोई फेरने ( उलटने-पलटने) वाला न था" से दिलवाया है, अस्तु "अनेक का एक उत्तर" स्वरूप यह चित्रालंकार है। वहिापिका रूप ब्रज-साहित्य में यह सूक्ति इस प्रकार भी मिलती है, जैसे- ___ "पान सरै, घोदा अरै, विद्या बीसर जाइ। जगरे में बाटी जरै, या कौ अर्थ बताइ॥" यहाँ भी दासजी जैसे चार प्रश्न हैं, पर उत्तर प्रस्तुत नहीं है, वह बाहर है, वह-'-गुरूजी फेरी नहीं" रूप में कहा जाता है। अतएव बात वही है, पर कहने का ढंग निराला है।" कारौ कियौ बिसेस को, पावक कहा सभाग। का सो रँग गौ भौर-पद, पंडित कहैं-"पराग"। अस्य तिलक इहाँ पराग=पर+भाग-सत्र, ललाई प्रो कमज-धूरि अर्थ करि तीनों प्रस्नन को उत्तर दियो । पा०-१. (का० ) (३०) (प्र०) मान....२, ( का० ) (३०) (प्र०) बरी जरी, घोरौ अरो...|३, (३०)(प्र०) दार.... ४. (का०) (३०) (प्र०) काहे...!