पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/६५८

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काम्य-निर्णय ६२३ कहि 'दास' बरती' न एती भली, समझौ वृषभान लली वह हैं। खरी झाँबरी होत चली तब वे, जब ते तुम पाए हौ भाँबरी दै। अस्य तिलक ____ इहाँ तुकांत में सुर ( ससर) "" को मेल-"बै, तै, है, है' में है, वरन कौ नाहीं ताते "सुर-मिलित" (स्वर) सुक भई । तीसरौ "दुरमिलित तुक" को उदाहरन जथा-- चंद सौ आँनन राजत तीय को, चाँदनी सों उतरीय" है उज्जल । फूल से 'दास' मरें बतियाँन में, हाँसी सुधा-सी लसै अति निरमल ॥ बाफता' कंचुकी-बीच बने' कुच, साफ ते तार मुलंम औ स्रीफल । ऐसी प्रभा अभिराँम लखें, हियरा में कियौ मँनों धाम हिमंचल ।। अस्य तिलक इहाँ-"उज्जल, निरमल, स्त्री (श्री) फल भौ हिमंचन में तुक दुरि ते मिले है, ताते "दुरमिनिस-तुक" कहिऐ। अथ अर्धेम तुक बरनन जथा- अमिल-सुमिल, मत्ता-अमिन, आदि-अंत को होइ । ताहि मधुम' तुक कहत है, सकल सोंने लोइ।। वि०-"दासजी इस दोहे द्वारा अधम-तुक और उसके तीन भेद-"अमि- ल-सुमिल" (अमलित-सुमिलित), 'श्रादि मत्त अमिल' और अंत मत्त-अमिल, अर्थात्-श्रादि मात्रा अमिल, अंत मात्रा-अमिल का वर्णन किया है। इनके अापने उदाहरण भी दिये हैं और व्याख्या रूप 'तिलक' से इन्हें बुद्धिगत भी बनाया है । इसलिये विशेष न्याख्या (परिभाषा ) असंगत है।" __ प्रथम अमिल-सुमिल अधम तुक को उदाहरन अति सोहती नोंद-भरी पलकें, अरु भीजी' फुलेनन सों"पलकें। सम-बुद कपोलॅन पैमलके, अँखियाँ लखि लाल को क्यों न छकें । पा०-१. (सपु०प्र०) परैते...। २. (का०) (३०) भायो है ..। ३. (३०) (स'०- पु० प्र०) राजतो"। ४. (का०) (३०) (प्र०) सों उतरीय महुज्जल । ५. (का०) (३०) (प्र०) बाफते"१६. (सपु०प्र०) लसे..."। (रा०पु०नी०प्र०) बंधे.."1७. (सपु०प्र०) साफता..." ". (का०) (2) मुलेमै भी। (स • पु० प्र०) मुलेमेसे"। ६. (का०) (३०) (प्र.) किये। १०.(का०) (३०) (प्र०) सोहति...1 ११.रका०) (०) (प्र०) भीजि... । १२. (का०) (०) की" (प्र०) ते"। १३. (का०) (३०) (प्र०) में ..!