पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/६९२

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काव्य-निर्णय अस्य उदाहरन जाकी सुभदाइक हचिर, कर ते मॅनि गिरि जाइ। क्यों पाऐं भाभास-मॅनि, होइ तासु चित-चाइ। अस्य तिलक मामास-मॅनि, मॅनि (मणि) की छाया को कहति है, ताते इहाँ-"क्यों नहि छाया-मात्र-मैनि" कहिनों उचित हो, सो अँनेम बात कही ताते पे उदाहरन भनियम प्रवृत्त की है। पुनः उदाहरन जथा- भकारी, भैकारिऐ, लेंन चाँहती जीय । तन-तापनि ताड़ित कर, जौमिनि-हीं जम-तीय' । अस्य तिलक यै दोहा इहाँ या प्रकार होंनों चहिऐ, जैसे- "कारी, भकारिनी, लेन चहत मो जीप । सन तान तादित करे, जाँमिनि जैम की तीय ॥" वि०-"दासजी मान्य इस "नियम-अनियम प्रवृत्त' को संस्कृत-रीति प्रथों में-"सनियम और अनियम परिवृत्तता" कहा है । सनियम परिवृत्तता उसे कहते हैं-जहाँ नियम पूर्वक कहना चाहिये उसे नियम पूर्वक न कहना और अनियम परिवृत्तता वहां होती है, "जहां-नियम पूर्वक न कहना चाहिये, पर नियम-पूर्वक कहना ।" अथ विसेस प्रवृत लच्छन जथा-- जहाँ और सामान्य कों, कहै बिसेस अयान । वाहि बिसेसपरवृत्त' गनि, दूषन करें सुजॉन ।। अस्य उदाहरन जथा- कहा सिंध खोपत मनिन, बीचिन कीच बहाइ। सक्यो कौस्तुभ-जोरि त, हरि सों हाथ बुदाइ । अस्य तिलक यहाँ दोहा या प्रकार करिनों पाहि पा०-१. (रा०पुनी०सी०) मामिन जम की तीय । २. (रा०पु०नी०सी, कारी जामिनी.. . (का०) (20)(प्र०) गर्ने"10. (का०) मपाइ । (१०)...पदम ...