पृष्ठ:काव्य-निर्णय.djvu/७२२

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६८७ काव्य-निर्णय अथ राम-नाम-महिमा ग्रंथ-संपूरनारथ जथा- पून सक्ति दुबर्न को मंत्र है, जाहि सबादि जपें सब कोऊ । पाबक पौन-सँमेंत' लस, मिलि जारत पाप-पहार कितोऊ ॥ 'दास' दिनेस कलाधर-भेष बंने जग के निसतारक जोऊ । मुक्ति-महीरुह के द्रुम हैं, किधों राँम के नाम के अच्छर' दोऊ ॥ आगर बुद्धि-उजागर है, भब-सागर की तरनी कौ3 खिवैया। ब्यक्त-बिधान, अनंद-निधान, है भक्ति-सुधा-रस-प्रॉन भवैया ॥ जॉन यहै, अनुमान' यहै, मँन-माँन के 'दास' भयो है सिवैया। मुक्ति को धाँम है, भुक्ति को दाँम' है, राँम को नॉम है कामद गया । पावतो पार न-बार कोऊ, परिपूरन पाप को पानिप जोतो । बूडतो मूठ-तरंगन में मिलि मोह-मई सरितॉन को सोतो।। "दासजू'त्रास-तिमिंगल सों, तँम-प्राह के प्रास सु बाँचती को तो। जो भब-सिंधु-अथाह-निबाह को रॉम को नॉम-मलाह न होतो ।। आप दसै-सिर-सत्रु हत्यौ, यै सै-सिर-दारिद को बध को है। सिंघ-बँधाइ तरे तुम तौ, ये तारक मोह' -महादधि को है। राबरे को सुनिएँ जसजाहर, बासी सबै घट के मधि को है। राँमजू, राबरे नाम में 'दास, लख्यौ गुन राबरे ते अधिक है। सिद्धन को सिरताज भयो, कबि कोबिद नॉम-हीं की सिबकाई । गीधगयंद, भजामिल से तरिगे, सब नॉम-ही को प्रभुताई॥ 'दास' को पहलाद-उबारत, राँम-हूँ ते पहले किहि ठाँई। रॉम-बढ़ाई न, नॉम-बड़ौ भयौ, राँम बड़ी निज-नाम बढ़ाई। राम को 'दास' कहाबै सबै जग, 'दास'-ह राबरौ दास निनारौ। भारी भरोसौ हिऐं सब ऊपर, है है मनोरथ सिद्ध हमारी॥ पा०-१. (२०)...पौन से मीत लसै...। २. (का०) (३०) (प्र०) (सं० पु० प्र०) भखार...। ३. (का०) (३०) (प्र०) के...। ४. (३०)...यहै पुनि मान वहै...। ५. (वे.)... दास न एहू सिवैया । ६.(३०)...धाम है. राम को नाम है काम देवैया । ७. (का०) (३०) ते...। . (वे.) ते.... ६.(का० )(प्र०) (स० पु० प्र०) हन्यों । (३०) आपद में सिर-सच हन्यों...।१०.(का०)(३०) (प्र०) मोहि महोदषि...। ११. (का०) (३०)(प्र०) यह...। १२. (३०) गृब...। १३. (०) कहि...। १४. (का०) (प्र०) निहारी । १५. (रा० पु. नी० सी०) तुब।