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कहा जाता है कि 'साहित्यिक इतिहास के अनुक्रम में पहले गद्य तब गीति-काव्य और इस के पीछे महाकाव्य आते हैं'; किन्तु प्राचीनतम संचित साहित्य ऋग्वेद छन्दात्मक है। यह ठीक है कि नित्य के व्यवहार में गद्य की ही प्रधानता है; किन्तु आरम्भिक साहित्य सृष्टि सहज में कण्ठस्थ करने के योग्य होनी चाहिए; और पद्य इस में अधिक सहायक होते हैं। भारतीय वाङ्‌मय में सूत्रों की कल्पना भी इसी लिए हुई कि वे गद्य खण्ड सहज ही स्मृति गम्य रहें। वैदिक साहित्य के बाद लौकिक साहित्य में भी रामायण तथा महाभारत आदि काव्य माने जाते हैं। इन ग्रन्थों को काव्य मानने पर, लौकिक साहित्य में भी पहले-पहल पद्य ही आये; क्योंकि वैदिक साहित्य में भी ऋचायें आरम्भ में थीं। फिर तो इस उदाहरण से यह नहीं माना जा सकता कि पहले गद्य, तब गीति काव्य, फिर महाकाव्य होते हैं।

संस्कृत के आदि काव्य रामायण में भी नाटकों का उल्लेख है। बधुनाटक संघैश्चसंयुक्ताम् सर्वतः पुरीम्―१४-५ अध्याय बालकाण्ड। ये नाटक केवल पद्यात्मक ही रहे हों, ऐसा अनुमान नहीं किया जा सकता। संभवतः रामायण काल के नाटकसंघ बहुत प्राचीन काल से प्रचलित भारतीय वस्तु थे। महाभारत में भी रंभाभिसार के अभिनय का विशद वर्णन मिलता है। तब