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इसलिए यह कहना ठीक नहीं कि भारत में अभिनय कठपुतलियों से आरम्भ हुआ; और न तो महावीर चरित ही छाया नाटक के लिए बना। उस में तो भवभूति ने स्पष्ट ही लिखा है—ससदर्भो अभिनेतव्यः। कठपुतलियों का भी प्रचार सम्भवतः पाठ्य काव्य के लिए प्रचलित किया गया। एक व्यक्ति काव्य का पाठ करता था और पुतलियों के छाया चित्र उसी के साथ दिखलाये जाते थे। मलाबार में अब भी कम्बर के रामायण का छाया नाटक होता है।*[१] कठपुतलियों से नाटक आरम्भ होने की कल्पना का आधार सूत्रधार शब्द है। किन्तु सूत्र के लाक्षणिक अर्थ का ही प्रयोग सूत्रधार और सूत्रात्मा जैसे शब्दों में मानना चाहिए। जिस में अनेक वस्तु ग्रथित हों और जो सूक्ष्मता से सब में व्याप्त हो उसे सूत्र कहते हैं। कथावस्तु और नाटकीय प्रयोजन के सब उपादानों का जो ठीक-ठीक संचालन करता हो वह सूत्रधार आज कल के डाइरेक्टर की ही तरह का होता था।

सम्भव है कि पटाक्षेप और जवनिका आदि के सूत्र भी उसी के हाथ में रहते हों। सूत्रधार का अवतरण रङ्गमंच पर सब से


  1. * The existence in India of the Ramayan shadow play will surprise not a few people. This primitivo drama is still to the found in Malabar, where it is acted by strolling players and their puppets, and the author was lucky in witness a performance. (Note of Editor, The illustrated Weekly of India, 7 July, 1935.)

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