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आत्मा के हैं। वे सब वर्णमाला के भीतर से ही प्रकट होते हैं। वर्णमालाओं के सम्बन्ध में अनेक प्राचीन देशों की आरम्भिक लिपियों से यह प्रमाणित है कि वह वास्तव में चित्र-लिपि है। तब तो यह कहना भ्रम होगा कि चित्रकला और वाङ्मय भिन्न-भिन्न वर्ग की वस्तुएँ हैं। इसलिए अन्य सूक्ष्मताओं और विशेषताओं का निदर्शन न कर के केवल मूर्त्त और अमूर्त्त के भेद से साहित्यकला की महत्ता स्थापित नहीं की जा सकती।

सम्भव है कि इसी अमूर्त्त सम्बन्धिनी महत्ता से प्रेरित हो कर प्लेटो ने प्राचीन काल में कविता को संगीत के अन्तर्गत माना हो। उन की विचार-पद्धति में कविता की आवश्यकता संगीत के लिए है। संभवतः अमूर्त्त संगीत आभ्यन्तर और मूर्त्त शरीर बाह्य इन्हीं दोनों आधारों पर कला की नींव ग्रीस के विचारकों ने रक्खी; सो भी बिलकुल भौतिक दृष्टि से—अध्यात्म का उस में सम्पर्क नहीं। इसी लिए प्लेटो का शिष्य अरस्तू कला को अनुकरण (imitation) मानता है। लोकोत्तर आनंद की सत्ता का विचार ही नहीं किया गया। उसे तो शुद्ध दर्शन के लिए सुरक्षित रक्खा गया।

कौटिल्य की तरह लोकोपयोगी राजशास्त्र को प्रधान मानते हुए व्यक्तिगत जीवन के स्वास्थ्य के लिए प्लेटो संगीत और व्यायाम को मुख्य उपादेय विद्या की तरह ग्रहण करता है। संगीत