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सूफी सम्प्रदाय मुसलमानी धर्म के भीतर वह विचारधारा है जो अरब और सिन्ध का परस्पर सम्पर्क होने के बाद से उत्पन्न हुई थी। यद्यपि सूफी धर्म का पूर्ण विकास तो पिछले काल में आर्यों की बस्ती ईरान में हुआ, फिर भी उस के सब आचार इसलाम के अनुसार ही हैं। उन के तौहीद में चुनाव है एक का, अन्य देवताओं में से, न कि सम्पूर्ण अद्वैत का। तौहीद का अद्वैत से कोई दार्शनिक सम्बन्ध नहीं। उस में जहाँ कहीं पुनर्जन्म या आत्मा के दार्शनिक तत्त्व का आभास है, वह भारतीय रहस्यवाद का अनुकरण मात्र है। क्योंकि शामी धर्मों के भीतर अद्वैत कल्पना दुर्लभ नहीं, त्याज्य भी है।

कुछ लोगों का कहना है मेसोपोटामिया वा वाबिलन के बाल, ईस्टर प्रभृति देवताओं के मन्दिरों में रहनेवाली देवदासियाँ ही धार्मिक प्रेम का उद्‌गम हैं और वहीं से धर्म और प्रेम का मिश्रण, उपासना में कामोपभोग इत्यादि अनाचार का आरम्भ हुआ तथा यह प्रेम ईसाई धर्म के द्वारा भारतवर्ष के वैष्णव धर्म को मिला। किन्तु उन्हें यह नहीं मालूम कि काम का धर्म में अथवा सृष्टि के उद्‌गम में बहुत बड़ा प्रभाव ऋग्वेद के समय में ही माना जा चुका है—कामस्तदग्ने समवर्तताधि मनसोरेनः प्रथमं यदासीत्। यह काम प्रेम का प्राचीन वैदिक रूप है। और प्रेम से वह शब्द अधिक व्यापक भी है। जब से हम ने प्रेम को Love या इश्क का पर्याय मान लिया, तभी से 'काम' शब्द की महत्ता कम हो गयी। सम्भवतः विवेकवादियों की आदर्श भावना के कारण इस शब्द में केवल स्त्री-