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उनकी साधनापद्धतियों का उल्लेख छान्दोग्य आदि उपनिषदों में प्रचुरता से है। ये लोग अपनी शिष्यमण्डली में विशेष प्रकार की गुप्त साधना प्रणालियों के प्रवर्तक थे। बौद्ध साहित्य में जिस तरह के साधनों का विवरण मिलता है। बहुत-कुछ इन ऋषियों और इन के उपनिषदों के अनुकरण मात्र थे, फिर भी वे अपने ढंग के बुद्धिवादी थे। और वे उपनिषदों के तां योगमिति मन्यन्ते स्थिरामिन्द्रियधारणाम् (कठ॰) वाले योग को अपने ढंग से अनात्मवाद के साधन के लिए उपयोग करने लगे।

श्रुतियों का और निगम का काल समाप्त होने पर ऋषियों के उत्तराधिकारियों ने आगमों की अवतारणा की और ये आत्मवादी आनन्दमय कोश की खोज में लगे ही रहे। आनन्द का स्वभाव ही उल्लास है, इसलिए साधना प्रणाली में उसकी मात्रा उपेक्षित न रह सकी। कल्पना और साधना के दोनों पक्ष अपनी-अपनी उन्नति करने लगे। कल्पना विचार करती थी, साधना उसे व्यवहार्य बनाती थी। आगम के अनुयायियों ने निगम के आनन्दवाद का अनुसरण किया, विचारों में भी और क्रियाओं में भी। निगम ने कहा था―

आनन्दाद्धयै स खल्विमानि भूताति जायन्ते, आनन्देनजातानि जीवन्ति। आनन्दं प्रयन्त्यभिसंविशन्ति॥

आगमवादियों ने दोहराया―

आनन्दोच्छलिता शक्तिः सृजत्यात्मानमात्मना।