पृष्ठ:काव्य और कला तथा अन्य निबन्ध.pdf/८६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
(४७)


ये विवेक और आनन्द की विशुद्ध धाराएँ अपनी परिणति में अनात्म और दुःखमय कर्मवादी बौद्ध हीनयान सम्प्रदाय तथा दूसरी ओर आत्मवादी आनन्दमय रहस्य सम्प्रदाय के रूप में प्रकट हुई। इसके अनन्तर मिश्र विचारधाराओं की सृष्टि होने लगी। अनात्मवाद से विचलित हो कर बुद्ध में ही सत्ता मान कर बौद्धों का एक दल महायान का अनुयायी बना। शुद्ध बुद्धिवाद के बाद इसमें कर्मकाण्डात्मक उपासना और देवताओं की कल्पना भी सम्मिलित हो चली थी। लोकनाथ आदि देवी-देवताओं की उपसना कोरा शून्यवाद ही नहीं रह गयी। तत्कालीन साधारण आर्य जनता में प्रचलित वैदिक बहुदेवपूजा से शून्यवाद का यह समन्वय ही महायान सम्प्रदाय था। और बौद्धों की ही तरह वैदिक धर्मानुयायियों की ओर से जो समन्वयात्मक प्रयत्न हुआ, उसीने ठीक महायान की ही तरह पौराणिक धर्म की सृष्टि की। इस पौराणिक धर्म के युग में विवेकवाद का सबसे बड़ा प्रतीक रामचन्द्र के रूप में अवतारित हुआ, जो केवल अपनी मर्यादा में और दुःखसहिष्णुता में महान् रहे। किन्तु पौराणिक युग का सबसे बड़ा प्रयत्न श्रीकृष्ण के पूर्णावतार का निरूपण था। इनमें गीता का पक्ष जैसा बुद्धिवादी था, वैसा ही ब्रजलीला और द्वारका का ऐश्वर्यभोग आनन्द से सम्बद्ध था।

जैसे वैदिक काल के इन्द्र ने वरुण को हटा कर अपनी सत्ता स्थापित कर ली, उसी तरह इन्द्र का प्रत्याख्यान करके कृष्ण की

र॰ ४