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प्रबन्ध में रहस्यात्मक संकेत रखना पड़ा। कदाचित् इसीलिए उन्होंने कहा है—अस मानस मानस चख चाही। किन्तु कृष्णचन्द्र में आनन्द और विवेक का, प्रेम और सौन्दर्य का संमिश्रण था। फिर तो ब्रज के कवियों ने राधिका-कन्हाई-सुमिरन के बहाने आनन्द की सहज भावना परोक्ष भाव में की। मीरा और सूरदास ने प्रेम के रहस्य का साहित्य संकलन किया। देव, रसखान, घनआनन्द इन्हीं के अनुयायी थे। मीरा ने कहा―

सूली ऊपर सैज पिया की, किस विध मिलणो होय।

यह प्रेम, मिलन की प्रतीक्षा में, सदैव विरहोन्मुख रहा। देव ने भी कुछ इसी धुन में कहना चाहा―

हो ही ब्रज वृंदाबन मोही मैं बसत सदा
जमुना तरंग स्याम रंग अवलीन की।
चहुँ ओर सुंदर सघन वन देखियत,
कुंजन मैं सुनियत गुंजन अलीन की॥
बंसीबट-तट नटनागर नटत्त भी में,
रास के विलास की मधुर धुनि बीन की।
भर रही भनक बनक ताल तानन की
तनक तनक ता में खनक चुरीन की॥

परन्तु वे वृन्दावन ही बन सके, श्याम नहीं। यह प्रेम का रहस्यवाद विरहदुःख से अधिक अभिभूत रहा। यद्यपि कुछ लोगों ने इसमें सहज आनन्द की योजना भी की थी और उसमे