पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/१०६

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काव्यदर्पण वह विरागी हुआ तो संसार नीरस हो गया ।" शेजी ने भी कुछ ऐसा ही कहा है। हम जो कुछ जड़चेतनात्मक प्राकृतिक पदार्थ देखते है और जिन प्राणियों के चीच रहते है उनसे एक हमारा अान्तरिक सम्बन्ध स्थापित है। हमलोगों में एक प्रकार का आदान-प्रदान होता रहता है। यह सर्वसाधारण को उतना स्पन्दित नहीं करता, जितना कवि को । कवि उसकी अभिव्यक्ति के लिए आतुर हो उठा है। क्योंकि वह उसके प्रकाशन की क्षमता रखता है। हम सब कुछ देखते-सुनते और समझते-बूझते भी मुक हैं, उसकी-खो प्रकाश-क्षमता हममें नहीं है। समाधि की योग में ही नहीं, काव्य में भी आवश्यकता है। समाधि का अर्थ अवधान है-चित्त की एकाग्रता है । इससे वाह्यार्थं की निवृत्ति और वेदितव्य विषय में प्रवृत्ति होती है। अभिप्राय यह कि "बहिरिन्द्रियों के व्यापार का उव विराम होता है तब मन के अन्तर में लवलीन होने से अभिधा के अनेक स्फुरण होते हैं।"3 इससे "काव्य-कर्म में कवि की समाधि ही प्रधान है। इसी बात को शेली कहता है कि "कविता स्फीत तथा पूर्णतम आत्माओं के परिपूर्ण क्षणों का लेखा है। इसी बात को प्रो० बा० म० जोशी यो कहते है कि "काव्यादि के निर्माण करनेवाले कलाकार आत्मविभोर की दशा में रहते है। कवि जब काव्य के विषय में तन्मय हो जाता है तभी उसके सहज उद्गार निकलते हैं।" कवि केवल अपने हौ लिए कविता नहीं करता, बल्कि दूसरों के लिए भी करता है। उसका उद्देश्य होता है कि जैसी मुझे अनुभूति होती है वैसी हो अनुभूति पाठकों को भी हो, उनके चित्त में रस-संचार हो। इसके लिए कवि शब्द और अर्थ-वाचक और वाच्य का श्राश्रय लेता है। क्योकि इनके बिना उसका उद्देश्य सिद्ध नहीं हो सकता। वह सीधे अपनी अनुभूति को पाठकों के हृदय में पैठा नही सस्ता । पाठकों या रसिकों के मन के भावों को रस का रूप देने के लिए उसको काव्य की सृष्टि करनी पड़ती है। अपनी भावना को सुन्दर बनाना पड़ता है। १. अपारे कान्य संसारे कविरेव प्रजापतिः । यथास्मै रोचते विश्व तथेदं परिवर्ती । शृंगारी चेत् कविः काव्या जातं रसमयं जगत् । स एव वीतरागाश्चेत् नीरसं सर्वमेव तत् । २. Poets are the trumpets which sing to battle, Poets are the unacknowledged legislature of the world. ३. मनसि सदा सुसमाधिनि विस्फुरणमनेकध मिधेयस्य-रुद्रट ४ काव्यकर्मणि कवेः समाधिः परं व्याप्रियते ।-काव्यमीमांसा ५. Poetry is the record of the happiest and best minds.