पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/११६

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२४ काव्यदर्पण का जो आश्रय लिया गया है वह इसी प्रयोजन से कि उस घोड़े की तेजी औरों से अधिक बतलायी जाय। उपयुक्त तीनों बातो-कारणों में से मुख्याथ की बाधा और मुख्याथ का योग, इन दोनों का प्रत्येक लक्षणा में रहना अनिवार्य है। इसी प्रकार तीसरे कारण रूदि या प्रयोजन का समस्त भेदों में यथासम्भव विद्यमान रहना भी श्रावश्यक है। चौथी छाया रूढ़ि और प्रयोजनवती रूढ़ि लक्षणा रूढ़ि लक्षणा वह है, जिसमें रूढ़ि के कारण मुख्यार्थ को छोड़कर उससे सम्बन्ध रखनेवाला अन्य अर्थ ग्रहण किया जाय । जैसे- __'पंजाब लड़ाका है।' पजाब अर्थात पंजाब प्रदेश लड़ाका नहीं हो सकता। इसमें मुख्याथ की बाधा है। इससे इनका लक्ष्यार्थ पंजाब-प्रदेशवारी होता है। क्योंकि पंजाब से उसके निवासी का आधाराधेयभाव का सम्बन्ध है। यहाँ पंजाबियों के लिए पंजाब' कहना रूढ़ि है। ऐसे हो 'राजस्थान वीर है' एक दूसरा उदाहरण है। बेतरह दुखे किसी दिल में, भले ही पड़ जाय छाला। जीम-सी कुंजी पाकर वे, लगायें क्यों मुह में ताला ॥ हरिऔध इसमें दो मुहावरे हैं-'दिल' में छाला पड़ जाना, और मुह में ताला लगाना' । इन दोनों के क्रमशः लक्ष्यार्थ हैं-'मन में असह्य पीड़ा होना' और 'कुछ भी न बोलना'। दोनों में मुख्यार्थ को बाधा है और मुख्याथं से सम्बन्ध रखनेवाले ये अर्थ लक्षणा से ही होते हैं। प्रयोजनवती लक्षणा प्रयोजनवती लक्षण वह है जिसमें किसी विशेष प्रयोजन की सिद्धि के लिए लक्षणा की जय । जैसे, - आँख उठाकर देखा तो सामने हड्डियों का ढांचा खड़ा है। इस वाक्य में हड्डियों का ढाँचा' का प्रयोग प्रयोजन-विशेष से है। वह है व्यक्तिविशेष को दुर्बल बताना। लक्षणा-शक्ति से हड्डियों का ढाँचा, दुर्बल व्यक्ति को लक्षित करता है । वक्ता ने इसका प्रयोग दुर्बलता की अधिकता व्यंजित करने के लिए ही किया है।