पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/१६०

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अनुभाव-विवेचन ये अलंकार अतुभाव ही हैं। यौवन के उक्त अट्ठाईस अलंकारो मे यह श्रा जाता है । रसउद्दीपक बालंबन को चेष्टाएँ उद्दीपन कहलाती हैं ; पर हाव इस प्रकार का नहीं होता। क्योंकि वह कार्यरूप है ; कारण-रूप नहीं। इससे विभाव के अन्तर्गत हाव की गणना नहीं की जा सकती । यहाँ सीता के श्राङ्गिक विकार अनुभाव ही हैं, जिनको गणना विहृत और औदार्य में की जा सकती है, हाव में नहीं। क्योंकि यहाँ का भू-नेत्र आदि का विकार संभोगेच्छा-प्रकाशक नहीं है। 7 बालबन और आश्रय के कार्य हो तो अनुभाव हैं। इससे सभी प्रकार की चेष्टाएँ तद्गत होने के कारण विभाव के अन्तर्गत ही ठहर जाती है। जो चेष्टाएँ रसोद्दीपक होंगी वे उद्दीपन मानी जायँगो और जो अनुराग के वाह्य प्रकाशक काय होंगे वे अनुभाव कहे जायेंगे। भानुभट्ट ने कहा भी है कि शोभाधायक होने से ये चेष्टाएँ उद्दीपन होती हैं और हृद्गत भावों को प्रकट करने से अनुभाव कही जाती हैं। एक उदाहरण से स्पष्ट हो जायगा कि श्राश्रय की चेष्टाएँ ही केवल अनुभाव नहीं होती, बल्कि आलबन की चेष्ट.एँ भी। छट्यो गेह काज लोकलाज मनमोहिनी को, भूल्यौ मनमोहन को मुरली बजाइबो। देखो दिन छ में 'रसखानि' बात फैलि हैं, सजनी कहाँ लौं चन्द हाथन दुराइबो। कालि हूँ कलिन्दी तीर चितयो अचानक ही, ____ दोउन को दोऊ मुरि मृदु मुसुकाइबो । होऊ परे पैयाँ दोऊ लेत हैं बलैयों उन्हें, भूलि गयी गैयाँ इन्हे गागरि उठ इबो । इसमें रति स्थायो है । मनमोहन और मनमोहनी दोनों के दोनों एक दूसरे के बालबन और आश्रय हैं। दोना का मूदु मुसुकाना, मुड़ना, कालिन्दी का कूल उहीपन विभाव हैं । ये विषयनिष्ठ और वाह्य दोनों प्रकार के हैं । परस्पर पैयाँ पड़ना, बलैया लेना आदि अनुभाव हैं। दोनों के अपने काम भूल जाने में मोह संचारी है। इसमें दोनों ओर से रति की चेष्टाएँ हैं। मुस्कुराने से रति भाव उद्दोपित होता है; पर दोनो के पांव पड़ने से उसका उद्दीपन नहीं होता, बल्कि रति-भाव के कार्य ही प्रकट होते हैं । इसमें दोनो उहीपन और अनुभाव स्पष्ट हैं । १ ये रसान् अनुभावयन्ति, अनुमवगोचरतां नयन्ति तेऽनुभावाः कटाक्षादय' करणत्वेन । कटाक्षादीनां करणवेनानुभावकत्वं विषयत्वेनोद्दीपनविभावत्वम् । रसतरगिणी