पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/१६६

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." : संचारी भाव देखने में मांस का शरीर है तथापि यह । सह सकता है चोट बञ की भी हँस के।-आर्यावतं. . यहाँ विपत्ति में धृति को व्यञ्जना है। रे मन साहसी साहस राख सुसाहस से सब जेर फिरेंगे। .. ज्यों 'पदमाकर' या सुख में दुख त्यों दुख से सुख सेर फिरैगे। वैसे ही बेण बजावत श्याम सुनाम हमारहु टेर फिरेगे । एक दिना नहिं एक दिना कबहु फिर वे दिन फेर फिरेंगे ॥ . . इसमें विरहिणी नायिका के धैर्य की व्यञ्जना है। . १३. ब्रीड़ा स्त्रियों के पुरुष के देख्ने आदि से, प्रतिज्ञा-भंग, पराजय, अनुचित कार्य करने आदि से लज्जा होना बोड़ा है। इसमें अधोमुख, विवणं और संकुचित होना आदि अनुभाव होते हैं। छूने में हिचक देखने में पलके आँखों पर झुकती हैं। कलरव परिहास भरी गूजे अधरों तक सहसा रुकती हैं। प्रसाद इस वर्णन से ब्रोड़ा व्यञ्जित है। सुनि सन्दर बैन सुधा रस साने सयानि है जानकी जान भली। तिरछे करि नैन दे सैन तिन्हें समुझाय कछू मुसकाय चली। 'तुलसी' तिहिं औसर सोहैं सबै अवलोकत लोचन लाहु अली। अनुराग तडाग में भानु उदै बिकसी मनो मर्जुल कंज कली। सीताजी के राम को अपना पति बताने में ब्रीड़ा संचारी है। १४ चपलता प्रेम अथवा ईर्ष्या-द्वष के कारण चित्त का अस्थिर होना चपलता है। अनुराग मूलक चपलता में बड़ा ही आकर्षण रहता है। इसमें खरी-खोटो बाते कहना उच्ङ्खल आचरण करना, स्वेच्छाचारिता से काम लेना आदि अनुभाव होते है। अहह कितना कंटकित पथ यह तुम्हारा अहित, हितकर, क्या यही उपयोग है पीयूष जीवन का गिराना- गर्त दुख में व्यर्थ जिसके हेतु, जिसने सुधि न ली हो, : ___ और तुमको छोड़कर यों गया जैसे जीर्ण कन्या । -भट्ट . यहां राधा के प्रति नारद को उक्ति से चपलता की ध्वनि है । चितवति चकित चहूँ दिसि सौता, कहँ गये नृप किसोर मन चीता । यहाँ अनुरागमूलक चपलता व्यअित है ।