पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/१७८

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८६ संचारी भाव और चित्तवृत्तियां "प्रोफसर वाटवे का कहना है कि स्मृति किसी भावना का विभाव वा कारण हो सकती है। स्मृति भूतकालीन प्रसग का संस्कार है। हर्ष, शोक, क्रोध आदि भावनाएँ गत प्रसंग के स्मरण से उद्दीपित होती हैं। इस प्रकार भावनोद्दीपन का कारण स्मृति है। स्मृति स्वतः भावना नहीं है। वह बुद्धि का व्यापार' है।" स्मृति की जो उपयुक्त व्याख्या है वह भ्रामक है । एक प्रत्यक्ष स्मरण होना है, जैसे कहा जाता है कि 'कामिनी का स्मरण भी मनोविकार के लिए पर्याप्त है। यही स्मरण मनोविकृति का कारण माना जा सकता है। क्योकि यहां दो विभिन्न वस्तुएँ हैं ; पर भावात्मक स्मृति विभिन्न प्रकार की होती है। क्योंकि सदृश वस्तु के दर्शन, चिन्ता आदि से पूर्वानुभूत सुख-दुख आदि रूप वस्तु के स्मरण को स्मृति' कहते हैं। स्मृति भी वोग चित्तवृत्ति मानी गयी है और ऐसा ही उसका भी लक्षण है। है विदित जिसकी लपट से सुरलोक संतापित हुआ, होकर ज्वलित सहसा गगन की छोर था जिसने छुआ। उस प्रबल जतुगह के अनल की बात भी मन से कहीं हे तात संधिविचार करते तुम भुला देना नहीं। गुप्त यहाँ श्रीकृष्ण के प्रति जो द्रौपदी की उक्ति है उससे जिस स्मृति की व्यंजना है वह अपमान रूप ही है। स्मृति अपमान से नड़ित है। इसमें स्मृतिजनित अपमान नही, बल्कि स्मृति ही अपमान-जनित है। जा थल कीन्हें बिहार अनेकन ता थल कॉकरी बैठि चुन्यो करै । जा रसना ते करी बहु बातन ता रसना सो चरित्र गुन्यो करै। 'आलम' जौन से कुञ्जन में करि केलि तहाँ अब सीस धुन्यो करै। नैननि में जो सदा रहते तिनकी अब कान कहानी सुन्यो करै। विरहिणी ब्रजांगना के इस कथन में हर्ष-विषाद का मिश्रण है। यहाँ स्मृति का उदय सादृश्य से नहीं, विपर्यय से है। दुःख में होने से सुख की स्मृति है। सुखस्मृति दुःख को और बढ़ा देती है। इसमें कारण-कार्य का वैषम्य है। इससे यह कहना कभी उचित नहीं कि स्मृति, हर्ष, शोक आदि भावों का विभाव या कारण है। बता कहाँ अब वह वंशीवट, कहाँ गये नटनागर श्याम ? चल चरणों का व्याकुल पनघट, कहाँ आज वह वृन्दा धाम ?-निराला १ मराठी रसविमर्श' पृष्ठ १३० २ सदृशचानाचिन्तायः भ्रू समुन्नयनादिकृत् । स्मृतिः पूर्वानुभूतार्थविषवज्ञानमुच्यते । सा० दर्पण ३ अनुभूतविषयासम्प्रमोषः स्मृतिः । योगसूत्र