पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/१९०

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१०२ काव्यदपण जो मिसरी मिछरी कहे कहे, खीर सों छोर । नन्हों सो सुत नंद को, हरै हमारी पीर । नन्द के नन्हें नंदन के कथन से दम्पति तथा श्रोताओं का केवल वात्सल्यभाव उबुद्ध हो उठता है। ११. भक्ति ईश्वर के प्रति अनुराग को भक्ति कहते हैं। जो जन तुम्हारे पद-कमल के असल मधु को जानते । वे मुक्ति की भी कर अनिच्छा तुच्छ उसको मानते ॥-गुप्त इसमें भक्ति-भाव की व्यंजना है। मुक्ति से उत्तको श्रेष्ठता प्रदर्शित है, भक्ति रस की पुष्टि नहीं है। क्योंकि केवल भक्ति के जानने भर की बात है। ____ इस पंक्ति से राम में केवल भक्ति-भाव का हो उदय होता है। इसको पुष्टि नहीं होती ! एक यह पंक्ति भी है- रामा रामा रामा आठो यामा जपौ यही नामा। उन्नीसवीं छाया स्थायी भाव-वैज्ञानिक दृष्टिकोणा कह पाये हैं कि स्थिरवृत्ति ( Sentiments ) ही हमारे स्थायी भाव हैं। यह भी कहा गया है कि स्थायी भाव सहजात, स्वसिद्धि और वासनारूप से वर्तमान रहने के कारण अविनाशी हैं। अभिनवगुप्त ने स्थायी भावों को तीन शब्दों से- वामना, पवित् (वृत्ति) और चित्तवृत्ति के नाम से अभिहित किया है। उनके मत से ये स्थायी भाव के वाचक शब्द हैं। इससे स्थायी भावों का जो स्वरूप खड़ा' होता है वह आधुनिक मनोविज्ञान के अनुकूल नहीं पड़ता; क्योंकि मनोवैज्ञानिक सेंटिमेंटों को उपलब्ध ( Aquired ) विकासशील तथा पत्र-तत्र ह्रासशील भी बताते हैं। बदि हम उक्त तीनों शब्दों को तुलना करें तो वामना शब्द का सहज प्रवृत्ति ( Instinct ) अथवा तुधा वासना ( Appetite ) संवित् शब्द का जन्मजातवृत्ति और चित्तवृत्ति शब्द का मनोऽवस्था अर्थ ले सकते हैं। सहजप्रवृत्ति एक स्वयं प्रेरित शक्ति है, जिसका व्यापार चिरकालिक होता है। उसमें पूर्वापर-योजना विद्यमान रहती है। तुंधा का साधारण अर्थ भूख है पर यहाँ १ नहिं एतच्चित्तवृत्तिवासनाशन्यः प्राणी भवति । 'केवलं कस्यचित् क्याचिदपिका चित्तवृत्तिः काचिदूना । नाट्यशास्त्र टीका