पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/२०

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२. जो बुराई शोषक के कारण शोषित मे आती है, वह करुणा का ही विषय होती है। ३. आजकल के उपन्यासो मे यह निर्धारित करना कठिन हो जाता है कि उनमे कौन-सा रस प्रधान है। किन्तु, रस की दृष्टि से उनका विश्लेषण किया जा सकता है। ___४. ( सेवासदन मे ) हिन्दू-समाज मे वेश्याओ के प्रति जो अादर-भावना है, वह वीभत्म का उदाहरण है। ५. गवन का मूल उद्देश्य है-स्त्रियो का आभूषण-प्रम तथा पुरुषो के वैभव-प्रदर्शन का दुष्परिणाम और पत्नी का पातिव्रत-प्रोरित नैतिक साहस और सुधार-भावना का उद्घाटन करना । रस की दृष्टि से हम इसको शृङ्गाराभास से सच्चे शृङ्गार की ओर अग्रसर होना कहेगे । ६. कुछ उक्तियाँ राजनीति से सम्बन्धित होने के कारण वीररस की कही जायेंगी। ____ इन उद्धरणो से स्पष्ट है कि नये साहित्य पर पुराने सिद्धान्त लागू करने मे काफी कठिनाई होती है और इस कठिनाई का सामना करने पर भी साहित्य के समझने में कितनी मदद मिलती है, यह एक सन्देह की ही बात रह जाती है। जीवन की धाराएँ एक दूसरे से ऐसे मिली-जुली है कि नौ रसो की मेड बाँधकर उन्हें अपने मन के मुताबिक नहीं बहाया जा सकता । प्रेमचन्द के साहित्य ने यह सिद्ध कर दिया है कि इस नये साहित्य को परखने के लिए युग के अनुकूल नये सिद्धान्त हूँढ़ने होगे। विवेचक विद्वान् ने सस्कृत-साहित्य के मनोयोगपूर्वक अध्ययन-मनन से काम नही लिया। नहीं तो, वे कुछ दूसरे ढंग से इन बातो को लिखते । इनके सम्बन्ध मे हमारा निम्नलिखित विचार है- काव्य के नौ रसो से नये साहित्य के परखने की बात कोई भावुक साहित्यिक कैसे कह सकता है ? 'काव्यदर्पण' मे ही नौ के स्थान मे ग्यारह रसो की सख्या दी गयी है। इनके अतिरिक्त बोसो रसो के नाम आये है। अनेक प्राचार्यों ने संचारी- भावो को भी रस-श्रेणी मे लाने की चेष्टा की है। आप भी अन्य रसो की कल्पना करके नये साहित्य मे आये हुए भावो को अपनी भावुकता से विभाव आदि द्वारा रसावस्था तक पहुँचावे । आपकी कलम कौन पकडता है ? यह तो साहित्यशास्त्र की मर्यादा की बात होगी। १. 'हंस', सितम्बर, १६४६