पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/२१३

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रसनिष्पत्ति नवीन विद्वानों का मत १२५. दोष के कारण अपनेको मन ही मन दुष्यन्त समझने लगते हैं। तब जैसे ( हमारे ) अज्ञान से ढंके हुए सीप के टुकड़े में चांदी का टुकड़ा उत्पन्न हो जाता है-हमें सीप के स्थान में चांदी की प्रतीति होने लगती है, ठीक इसी तरह पूर्वोक्त दोष क कारण कल्पित दुष्यन्तत्व से आच्छादित अपनी श्रात्मा में, शकुन्तला आदि के विषय में, अनिर्वचनीय सत्-असत् से विलक्षण (अतएव जिनके स्वरूप का ठीक निणय नही किया जा सकता ऐसी) रति आदि चित्तवृत्तियाँ उत्पन्न हो जाती है- अर्थात् हमें शकुन्तला श्रादि के साथ व्यवहारतः बिलकुल झूठे प्रेम आदि उत्पन्न हो जाते हैं और वे (चित्तवृत्तियां ) श्रात्मचैतन्य के द्वारा प्रकाशित होती हैं। बम उन्हीं विलक्षण चित्तवृत्तियो का नाम रस है।" __इस मत के अनुसार संयोग का अर्थ है एक प्रकार का भावनारूपी दोष और निष्पत्ति का अर्थ है उत्पत्ति । यह मत प्रचलित न हो सका। कारण यह कि सभी को, जिनमें रति आदि वासना का अभाव रहता है, वह श्रास्वाद नहीं होता। अनिर्वचनीय रति आदि की कल्पना निरर्थक है । दूसरे यह कि सौप के टुकड़े में चाँदी के टुकड़े-जैसो प्रतीति रसप्रतीति नहीं। क्योंकि वह बाधित नहीं, प्रतीति के अनन्तर हमें उसका बोध बना रहता है। तीसरे यह कि सीप में चांदी की भावना- जैसी रस की भावना सहृदय-हृदय-सम्मत् नहीं है । रिचार्ड की रसनिष्पत्ति-प्रक्रिया रिचार्ड कहते हैं कि प्रथम शब्दों का परिणाम ( Visual ) होता है । अर्थात् शब्दों का नाद मानस-कर्ण-कुहर में प्रवेश करके काव्य के बहिरंग और अन्तरंग का आभास देता है। फिर पाठकों को उसकी कल्पना ( Tied imagery ) जाग्रत होती है । अर्थात् काव्य की वर्णित बस्तु के जो शब्द कान में पड़ते हैं वह वस्तु कल्पना में दीख पड़ने लगती है। फिर पाठकों के मन में उसके समान कल्पना ( Free imagery ) जाग्रत होती है । पुनः पाठकों के प्रत्यक्ष अनुभव से उसका सम्बन्ध होता है, जिससे उसकी भावना ( Emotion ) उद्दीपित होती है। इससे जो एक वृत्ति ( Attitude ) प्रस्तुत होती है उससे ही रस की अभिव्यक्ति होती है। यह प्रक्रिया भट्टनायक और अभिनवगुप्त को रसनिष्पत्ति-प्रक्रिया से प्रायः मिलती-जुलती है। तैंतीसवीं छाया अनुभूतियाँ अनुभूति का अर्थ है ज्ञान । यह चार प्रकार का होता है-प्रत्यक्ष-ज्ञान, अनुमान-ज्ञान, उपमान-बान और शब्द-ज्ञान । हिन्दी-साहित्य में अनुभूति शब्द'