पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/२२६

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साधारणीकरण और व्यक्तिवैचित्र्य १३६ रसदोष उपस्थित हो जाता है ; क्योंकि दीन और असहाय कृपा के ही पात्र होते हैं न कि क्रोध के। यदि ऐसे व्यक्ति के प्रति क्रोध की प्रबल व्यञ्जना की जाती है तो अस्थान में विस्तार का दोष तो रखा ही है। पुनः-पुनः दीप्ति का भी दोष लग जायगा। क्योंकि जब क्रोध की प्रबल व्यञ्जना है तो क्रोध को बार-बार उत्तेजना देना ही पड़ेगा। इससे यहां रस के रूप में वह लिया ही नही जायगा। पांचवीं बात यह है कि क्रोध की प्रबल व्यञ्जना का रूप रह ही नहीं जायगा। यदि क्रोधी की क्रोध-व्यक्ति पर या किसी को अत्याचारप्रवणता पर हम भी श्राग- बबूला हो जायँ, मंच पर जूता चला बैटे तो उसका वह रूप लौकिक हो जायगा । पुनः-पुनः दिप्त का दोष तो है ही। ___ इसीसे कहा जाता है कि साधारणीकरण को अतिरेक होने पर रसानुभव नही होता । यदि किसी को रोते देख उसके साथ हम भी रोने लगें तो यहां हम अपने को खो बैठते है। हममें रसानुभव को शक्ति रह ही नहीं जाती। रसानुभव के लिए तन्मयीभवन योग्यता का स्वातन्त्र्य ही अपेक्षित है । द्रष्टा या श्रोता ऐसे स्थानों में अर्थात् भाव-व्यक्ति को दशा में क्रोधी व्यक्ति के प्रति जो भाव धारण करेगा वह संवेदनात्मक न होकर प्रतिक्रियात्मक होगा । यह वहीं तक भावात्मक रूप रख सक्ता है जो हमारी प्रतिक्रियात्मक भावना को सहला दे। ___यदि क्रोध को व्यञ्जना कथमपि दीन के प्रति हो क्योंकि जब कभी हम सब भिखमगों पर मुझला उठते हैं और उक्त दोनों दोष न लगें तो वहां करुण रस का संचार होगा और इसमें साधारणीकरण भी संभव है। इस दशा में कोई भी विरुद्ध भाव श्रोता या पाठक के मन में न उठेगा और न प्रतिक्रिया की भावना ही सुगबु- गायगो। कारण यह कि करुण रस हृदय को इतना श्राद्र कर देता है कि किसी अन्य भाव को प्रश्रय ही नहीं मिलता। यही कारण है कि सीता की भर्त्सना करनेवाले रावण की ओर हमारा ध्यान नहीं जाता। हमारा विशेषतः सतीसाध्वी स्त्रियों का, सीता के साथ साधारणीकरण हो जाता है । डाक्टर भगवान दास कहते हैं, "दूसरी प्रकृति के लोग पीड़ित, भवभौत, विभत्सित श्रादि के भाव का अपने उपर चितन करके उसके साथ अनुकम्पा के करुण रस का और दुष्ट के ऊपर क्रोध, घृणा श्रादि के रस का आस्वादन करते हैं।"१ इसमे सन्देह नहीं कि ऐसे अनेक अवसर आते है और वे रसदोष से दूर रहते हैं, जहां आश्रय के पौड़न का भाव आलबन के प्रति प्रत्यक्ष होता है। 'जीवन' नामक चित्रपट में पाकेटमार चंदू एक लड़का चुराकर रमेश को स्त्री को देता है। और उसके बदले में बार-बार जब रुपया मांगने आता है और उसपर अपनी धौंस १ पुरुषार्थ