पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/२३३

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१४६ काव्यदर्पण दूसरा कुछ नहीं। इसका अलोक-सामान्य होना ही इसे ब्रह्मानन्द-सहोदरता को कक्षा को पहुँचाता है। ____रस लौकिका भी होता है और अलौकिक भी। लौकिक को कोई महत्ता नहीं और अलौकिक को महत्ता का वर्णन काव्यशास्त्र करता है । अाज अलौकिक रस को लौकिक सिद्ध करने का आन्दोलन-सा उठ खड़ा हुआ है। कोई कहता है कि "प्रत्यक्षानुभूति से काव्यानुभूति कोई पृथक वस्तु नहीं है। यह अवश्य है कि सानुभूति प्रत्यक्षानुभूति का परिष्कृत रूप है । यह नहीं कि रसानु- भूति प्रत्यक्षानुभूति को अपेक्षा मूलतः कोई भिन्न प्रकार की अनुभूति है ।" यह रिचार्ड स के प्रभाव का ही परिणाम है, जिन्होंने यह कहा था कि "जो लोग अलौकिक आदि शब्दों में कला की महिमा गाते हैं, वे कला के सौंदर्य के संहारकर हैं।" हमारा कहना है कि परिष्कृत रूप होना ही केवल उसको अलौकिकता नहीं । ऐसी अनुभूति का लौकिक रूप नहीं होता ; इसी में उसकी अलौकिकता है । मूलतः भी दोनों एक नहीं है। ___यह कर्त्तव्य नहीं कि घटित घटना को आवृत्ति करें; बल्कि क्या घट सकता है। इतिहास तथ्य पर निर्भर करता है । पर, कविता तथ्य को सत्य में परिणत करती है । काव्य का सत्य यथार्थता की नकल नहीं होता; बल्कि वह एक उच्च यथार्थता ही होता है, क्या हो सकता है, क्या है, यह नहीं ।' इससे लौकिक प्रत्यक्ष और कवि-प्रत्यक्ष एक नहीं हो सकते। ___हम किसी असहाय-दुर्बल को सबल द्वारा ताड़ित और लांछित होते देखकर ऋद्ध हो उठते हैं और उसकी प्रतिक्रिया के लिए कमर कस लेते हैं। किसी क्षुधित अबोध बालक की भूखी-सूखी मा को सड़क पर बिलबिलाती देखते हैं, तब हमारी करुणा चिल्लाकर कहती है कि कुछ दो, सहायता करो। किसी अनाथ विधवा को देखते हैं, तरस खाते हैं और अनाथालय का प्रबन्ध करते हैं। इनमें अनुभूति भी है और प्रतिक्रिया की प्रेरणा भी। यह व्यक्तिगत क्रोध, करुणा की प्रत्यक्षानुभूति १ रिचार्डस का काना है-There is no gap between our every day emotional life and the material of poetry. -Practical Grticism (summary) • २ Principles of Literary Criticism. ', ३ It is not the function of the poet to relate what has • happened but what may happen......."poetry transforms its facts isite truths. The truth of poetry is not a copy of reality but hings reality what to be, not what is. Poetics