पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/२३५

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१४८ काव्यदर्पण. संभव है कि यदि नट यह बात भूल जाय कि यह हमारी स्त्री है और हमलोगों के समान उसे काव्यार्थ को भावना होने लगे, तो उसे केवल लौकिक रस का ही आनन्द नहीं होता ; बल्कि काव्य रस का भी मजा मिलता है। अब विचार करने की बात यह है कि कवि किसके लिए काव्य-नाटक की रचना करता है ? वह काव्य-. नाटक के पात्रों के लिए तो करता नही, करता है रसिकों के रसास्वाद के लिए । यदि पात्र रसानुभव करने लगे, तो अनेक दोष आ जाते है। एक तो यह कि जब पात्र आनंदमग्न हो जायगा, तो उसके कार्य वैसे नहीं हो सकते, जिसके कृत्यो का वह अनुकरण करता है ; क्योंकि उसका ध्यान अन्यत्र बँट जायगा। दूसरी बात यह कि उसका रूप लौकिक हो जायगा । काव्य-नाटको' में राम-सीता या दुष्यन्त-शकुन्तला को रति को लौकिक दुष्यन्त-शकुन्तला की रति मान लें, तो दर्शक उन्हे अपनी प्रणयिनी के साथ लोकिक शृङ्गारी पुरुष ही समझेगा। इससे होगा यह कि रसिक दर्शकों को रणस्वाद नहीं होगा। रहस्य के उद्घाटन से भलेमानसो को लाज भी लगेगी। कितनो को ईर्ष्या और डाह होगी तथा बहतो को प्रेम भी उमड आ सकता है। इससे पात्रों को रसानुभव होता है, यह कहना उचित नहीं प्रतीत होता । उसोसे कहा है कि नट को कुछ भी रसास्वाद नहीं होता । सामाजिक रस को चखते है । नट तो पात्र मात्र हैं। तीसरी बात यह कि रस व्यग्य होता है, यह सिद्धांत भी भंग हो जायगा। इससे काव्यगत रस लौकिक होता है और रसिकगत रस अलौकिक । पहला दूसरे का कारण हो सकता है । ____ कवि योगी नही होते, जो ध्यानमग्न हो दिव्यचक्षु से देखकर राम आदि की अवस्था का ज्यों-का-त्यो वर्णन करते। वे उनकी सर्वलोक साधारण अवस्था को झलका देते हैं। अभिप्राय यह कि रसिक धीरोदात्त श्रादि नायकों की अवस्थाओं के प्रतिपादक राम आदि की जो विभावना करते हैं वही उन्हें प्रास्वादित होता है। उदाहरण के लिए राम चरित्र को लीजिये। लोकोपकार के लिए राम ने लौकिक- चरित्र दिखलाया । वही चरित्र लव-कुश के मुख से वाल्मीकि के श्लोकों में सुना, तो केवल वही नहीं, सभा-की-सभा चित्रलिखित-सी हो गयी। क्योंकि, उस लौकिक चरित्र को कवि ने अपनी वाणी में अपने अतःकरण की आनन्दवेदना से ओत-प्रोत कर दिया था। राम का चरित्र पहले लौकिक था और अब अलौकिक हो गया था। अभिनव गुप्त कहते हैं-'वीताविध्ना प्रतीतिः' अर्थात् लौकिक प्रतीति में जो भाव उद्भूत होते हैं, वे ऐसे विन्नों से घिरे रहते हैं कि स्वच्छन्द रूप वे अपने को प्रकाशित नहीं कर सकते ; किन्तु काव्य-नाटक के द्वारा जो भाव १ काव्यार्थ-भावनास्वादो नर्तकस्य न वार्यते । दशरूपक किचिन्न रस स्वदते नटः । सामाजिकास्तु लिहते रसान् पात्रं नटो मतः। सगीत रत्नाकर