लौकिक रख और अलौकिक रस उसको प्रतिभा नयी प्रतिमा गढ़ देती है । कवि जब रचना करता है, तब उसे वह आनन्द प्राप्त नहीं होता, जो रचना के अनन्तर उसको बार-बार पढ़ने पर प्राप्त होता है। इस समय वह रमिक के स्थान पर हो जाता है। इसीसे कवि के कान में और रसिक के आस्वाद में अन्तर है । इसीसे अभिनव गुप्त कहते हैं कि कवि काव्य का मूल बीज है । इससे पहले कविगत ही रस है। कवि भी सामाजिक के तुल्य ' है।' अतः काव्यगत रस लौकिक है; क्योंकि कवि-निर्मिति के रूप में उसको लौकिकता तब तक बनी रहती है, जब तक आस्वादयोग्यता को नहीं पहुंचती । काव्य से जो रसिकों को रस मिलता है, वह केवल उससे भिन्न ही नहीं होता, बढ़ा-चढ़ा भी । इसीसे काव्य का आंवला रसिका के हृदय में उनको अनुभूति और कल्पना से जो रूप धारण करता है, उसका आनन्द निराला होता है। क्योंकि तब आँवला अावला न रहकर मुरब्बा का रूप धारण कर लेता है। इसीसे भरत कहते हैं कि अनेक भावों और अभिनयों से व्यञ्जित स्थायी भावों का आनन्द सहृदय दर्शक लूटते हैं, और प्रसन्न होते हैं । ___ मानसशास्त्र भी इसे मानता है और इसको श्रादर्शनिर्माण ( ideal cons- truction) कहता है। मिल्टन का इस सम्बन्ध में कहना है कि मैं तो श्राघात मात्र करता हूँ। संगीत-निर्माण का कार्य तो श्रोता पर ही छोड़ देता हूँ। यह उपयुक्त विचार की ही विदेशी ध्वनि है। ___ अभिनव गुप्त कहते है-'काव्य वृक्ष-रूप है, अभिनव श्रादि नट का व्यापार पुष्प-स्थानीय है और सामाजिकों का रसास्वाद फलस्वरूप है। भाव यह कि काव्यगत रूप तक रस-निर्माण नहीं होता, होता है रसिकों के हृदय में । विचेष्टर भी यही बात कहते हैं कि "पहले तो कवि-निर्मित काव्य मे भावात्मक साधन होते हैं । फिर उसको पढ़कर हम समझते है कि वह हम मैं कहाँ तक भावों को जागृत करता है । काव्यगत सामग्री का प्रयोजन है पाठकों के हृदय में रखोदय करना।" १ मूलवीजस्थानीयात् कविगतो रसः। कविहि सामाजिकतुल्य एव । -अभिनवभारती २ नानाभावाभिनयव्यंजितान् बागङ्गशत्वोपेतान् स्थायिभावान् आस्थादयन्ति सुमनसः प्रेक्षकाः हर्षादींश्च गच्छन्ति।-नाट्यशास्त्र 3 He (Milton ) strikes the key-note and expects his hearers to make out the melody. ४ वृक्षस्थानीयं काव्यम्, तत्र पुष्मादिस्थानीयोऽभिनयादिनटव्यापारः। तत्र फलस्थानीयः सामाजिकरसास्वादः।-० भारती 5 By the phrase, emotional element in literature, then, we will understand the power of literature to awaken emotion in us, who read, emotional element in literature means the emotion of the reader. -Principles of Literary Criticism.
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