पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/२४०

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रस और मनोविज्ञान १५३ होता। ढके हुए पदार्थ को दोपक नहीं दिखा सकता। परन्तु, रस ऐसा नहीं है। • क्योंकि प्रतीति के बिना रस को सत्ता ही नहीं रहती । इससे रस अलौकिक है । (२) लौकिक वस्तु नित्य होती है, पर रस नित्य नहीं है : क्योंकि विभाव श्रादि के ज्ञान-पूर्व रस-संवेदन होता ही नही और नित्य वस्तु असंवेदन काल में अर्थात् जब वस्तु का ज्ञान नहीं रहता, तब भी नष्ट नहीं होती। रस ज्ञान-काल में ही रहता है, अन्य काल में नहीं। अतः उसे नित्य भी नहीं कह सकते । अतः रस लोकवस्तु भिन्नधर्मा है, अलौकिक है। (३) लौकिक पदार्थ कार्य-रूप होते हैं ; पर रस कार्य-रूप नहीं है ; क्योंकि रस विभावादिसमूहालंबनात्मक होता है। अर्थात् विभाव आदि के साथ रस सामूहिक रूप से एक ही साथ प्रतीत होता है । यदि रस कार्य होता, तो उसका कारण विभाव श्रादि का पृथक् ज्ञान होता। लौकिक कार्य में कारण और कार्य एक साथ नहीं दोख पड़ते । अब यदि विभाव आदि को कारण माने और रस को कायं, तो इनकी प्रतीति एक साथ न होनी चाहिए। किन्तु रस-प्रतीति के समय विभाव आदि को भी प्रतीति होती रहती है । अतः विभाव श्रादि का ज्ञान रस का कारण नहीं और इसके अतिरिक्त अन्य कारण संभव नहीं ; अतः रस किसी का कार्य नहीं हो सकता है। रसास्वाद के समय विभाव, अनुभाव और संचारो भावों के साथ ही स्थायी भाव रसरूप में व्यक्त होता है, जो लौकिक कार्य के विपरीत है । इससे रस अलौकिक है। (४) लौकिक पदार्थ भूत, वर्तमान या भविष्यत् होते हैं, पर रस न तो भूत, न वर्तमान और न भविष्यत् ही होता है। यदि ऐसा होता तो, जो वस्तु हो चुकी उसका साक्षात्कार आज कैसे हो सकता है ? पर ऐसा होता है । अतः रम अलौकिक है। ____ इस प्रकार दर्पणकार ने रस की अलौकिकता के अन्य अनेक कारण दिये हैं। जटिलता के कारण उनका यहाँ उल्लेख अनावश्यक है। मनोवैज्ञानिक भी इस बात को मानते हैं कि काव्यानुभूति-रस एक विलक्षण अनुभूति है। रिचाड्स ऐन्द्रिय हो क्यो न कहें ; परन्तु ऐन्द्रिक ज्ञानों की अपेक्षा असाधारण है ; क्योंकि यह भावना से प्राप्त भावित (Contemplated) अनुभूति होती है । ऐन्द्रिय ज्ञान की स्थूलता और प्रत्यक्षता इसमें अधिकतर नहीं रहता । रस श्रात्मानन्द रूप होता है। 'रसो वै सः' अनुभूत या संवेदन सूक्ष्म रूप से होता है; पर चित्तद् ति के कारण वह व्यापक और विस्तृत होता है । साधारणतः ऐन्द्रिय ज्ञान का यह रूप नही होता। यद्यपि इस अनुभूति के लिए रिचाडस के कथनानुसार इन्द्रिय-विशेष का निर्माण नहीं है, तथापि यह भी नहीं कहा जा सकता कि रसानुभूति अमुक इन्द्रिय से होती है । हमारे यहां मन को भी इन्द्रिय माना गया है और रस मानस-प्रत्यक्ष होता है । सहृदयता हो इस अनुभूति में सहायक है।