पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/२४३

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काव्यदर्पण वा घृण्य होने के कारण फेंक देने या सुखदायक, ग्राह्य, स्पहरणीय वा अच्छा होने के कारण बार-बार सू घने की इच्छा हो तो वह अनुभव संकल्पात्मक वा प्रेरणात्मक माना जायगा। भाव के सम्बन्ध में तीन मत हैं। एक का कहना है कि भाव एक प्रकार की सवेदन ही है, जो सुखात्मक होता है और कहाँ तीव्र । दूसरी बात यह कि अनेक संवेदन तो नहीं, पर उसका गुण है । सुख वा दुःख होना भाव का वैसा ही गुण है जैसा कि संवेदन कहीं मंद होता है और कहीं तीव्र । दूसरी बात यह कि अनेक सुख-दुःख मानसिक ही होते है, जिनका सम्बन्ध संवेदन से नहीं होता। तीसरे का कहना यह है कि भाव का स्वतन्त्र स्थान है। कारण यह कि भाव स्वतः उद्भत होता है, जिसका सम्बन्ध भावुक से होता है और बोधात्मक अनुभव का सम्बन्ध वस्तु से होता है। दूसरी बात यह कि भावुकों के एक ही वस्तु के सम्बन्ध में भाव भिन्न-भिन्न हो सकते हैं पर वस्तु-सम्बन्धी बोध सभी का एक ही होगा। __ मैगड्यूगल साहब ने मनोवेगों को सहजवृत्तियाँ ( इन्सटिक्ट ) कहा है। सहजवृत्तियां वे ही कहलाती है, जिनमें तीनों प्रकार के उक्त अनुभव माने गये हैं। अर्थात् सहजवृत्तियों में ज्ञानात्मक, भावात्मक और क्रियात्मक अनुभव होते है । भावात्मक वृत्तियां (सेटिमेट्स ) स्थिर वा स्थायी होती हैं और इनसे सम्बन्ध रखनेवाले मनोवेग अनेक होते हैं। अलेक्जेडर शंड का कहना है कि मन की प्रवृत्ति सहेतुक होती है। उसकी सिद्धि के लिए मन की सारी प्रवृत्तियों और शरीर के सारे अवयवों का योग आवश्यक होता है। ऐसे मानवी मनोव्यापार की एक प्रबल प्रवृत्ति दीख पड़ती है। अतः सहज प्रवृत्तियो का संघ बनता और उनका कार्य चलता रहता है। जब सहज प्रवृत्ति वा भावना एक रहती है तो प्राथमिक (primary) कहलाती है और जब एक से अधिक सहज प्रवृत्तियाँ काम करने लगती हैं तो अनेक सहचर भाव भी एक दूसरे से मिल जाते हैं। इन मिश्रित भावनाओं को संमिश्र (complex) और इनके विशिष्ट विभावों को साधित भावना (derived emotion) अर्थात् संचारी या व्याभिचारी कहते हैं। ड्रमड और मेलोन ने मनोवेग और भाव-इमोशन और सेंटिमेंट-का यह लक्षण किया है-मनोवेग मन की एक अवस्था है, जिसका अन्त साक्षिक अनुभव हो । भाव या भाववृत्ति वह मनोवेगात्मक वृत्ति है, जिससे मनोवेग की उत्पत्ति होती है । यह स्थायी भाव और सचारो भाव का गड़बड़धोयला है। . 1. Thg,emotion is the state of mind as it is consciously • felt, the sentiment is the emotional dispposition out of which it arises. : .