पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/२५९

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उनचासवीं छाया रस-सामग्री-विचार रस काव्यगत है या रसिकगत, इस विषय को लेकर प्राच्य श्राचार्यों, पाश्चात्य समीक्षक और मनोवैज्ञानिकों में बड़ा ही मतभेद है। हमारे प्राचार्यों ने स्पष्ट कहा है कि विभावादि काव्यगत होता है और रस रसिकगत । धनंजय ने कहा है "काव्यवर्णित अथवा अभिनय में प्रदर्शित विभाव, अनुभाव, संचारी तथा सात्विक भावों से श्रोता तथा द्रष्टा के अन्त:करण में परिवर्तन रति आदि स्थायी भाव आस्वादित होकर रस-पदवी को प्राप्त होते हैं। जैसे घृत आयुवर्द्धक होने के कारण स्वतः आयु ही कहा जाता है वैसे ही काव्य रसिकों को आनन्द देने के कारण रसवत् कहा जाता है।" पाश्चात्य विवेचक मानसशास्त्र पर बहुत निर्भर करते हैं। इससे काव्य- विचार के समय कवि का मानस टटोलते हैं और तदनुसार काव्य में ही रस का होना मानते हैं । वे कहते हैं कि जो काव्य में होगा वही तो पाठक या श्रोता के मन में उपजेगा। इससे काव्य में ही रस है। कितने कहते हैं कि काव्यगत रख और 'रसिकगत रस में भिन्नता है। काव्यगत रस का रूप एक ही रहता है ; पर रसिकों की मानसिक स्थिति को भिन्नता के कारण उसके रूप में अन्तर पड़ जाता है। इस प्रपंच में न पड़कर हम तो यही कहेगे कि रस रसिकगत ही होता है ; क्योंकि उसकी व्युत्पत्ति यही कहती है। 'रस्यते-आस्वाद्यते (सामाजिकैः) इति रसः' अर्थात् सामाजिक जिसका श्रास्वाद लें वह रस है। आप यहाँ कह सकते हैं कि (सामाजिकैः) कर्ता के स्थान पर (कविभिः) कहें तो रस काव्यगत हो जायगा। पर नहीं। महामुनि भरत ने स्पष्ट कहा है कि 'सहृदय दर्शक ही प्रास्वाद लेते हैं और प्रसन्न होते हैं।' धनंजय का भी यही कहना है। इसी बात को प्रकारान्तर से अभिनव गुप्त भी कहते हैं—कवि के मूल बीज होने के कारण रस कविगत है।' कवि भी सामाजिक के समान ही है ; क्योंकि जब वह अपनी रचना का स्वतः पाठ करने लगता है तब उसमें और सामाजिक में कोई भेद १ वक्ष्यमानस्वभावः विभावानुभावव्यभिचारी सात्विकः काव्योपात्तरभिनयोपदर्शितैर्वा ओतप्रेक्षकणायनन्तविपरिवर्तमानो रत्यादिक्ष्यमाणलक्षणः स्थायो स्वादगोचरतां निर्भरानन्द- संविदात्मतामानीयमाना रसः, तेन रसिकाः सामाजिकाः, काव्यं तु तथाविधानन्दसंविदुन्मीलन- हेतुभावेन रसवत्, आयु, तमित्यादिव्योपदेशात् ।-द० २०४, १ की टीका २ नानाभाषाभिनयव्यजितान् स्थायीभावान् आस्वादयन्ति सुमनसः प्रेक्षकाः हर्षादींश्च गच्छन्ति । ३ रसः स एव स्वायत्वात् रसिकस्यैव वर्तमान् । (६० रु० ४,३८)