पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/२६

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इस दृष्टि से वह अपरिवर्तनशील भी है। कविता की अभिव्यञ्जना, शैली आदि से जहाँ तक सम्बन्ध है वहाँ तक वह परिवर्तनशील है। अभिव्यक्ति की प्रक्रिया मे हो समयानुसार अन्तर आ सकता है, उसके अन्तस्तत्त्व मे नही। करुणा अथवा वात्सल्य की जो अनुभूति भरत-काल मे थी, वही अब भी है। भारत मे ही क्यो, विदेशो मे भी अनुभूति का यही रूप पाया जायेगा । कविता का शाश्वत रूप यही है और मुख्य है। इससे कविता शाश्वत और अपरिवर्तनशील है। कविता मनुष्य- प्रकृति के साथ अपना रूप-रंग बदलती है, इसे कौन नहीं मानता ! ___ अतीत के तत्त्वो के प्रदर्शन के कारण कोई कविता मृत नहीं हो सकती। अाज भी ऐसी कविताएँ हो रही है और जीवित है और उनमे जीवन के लक्षण पाये जाते है। प्रगतिशील कविताओ की सृष्टि ही निर्जीव मालूम होती है। प्रगतिशील साधनो को लेकर कविता की जाय, इसमे किसीको आपत्ति ही क्यो होगी। हमारे विचार से तो यह कहना अच्छा है कि वर्तमान काल मे जन-जीवन को भी एक तत्त्व मानना चाहिये। यह नही कि मजदूर-किसान के जीवन की समस्याएँ, उनके भाव और विचार, उनके संघर्ष के तरीके, उनका सशस्त्र-अान्दोलन, उनको समस्त प्रति- क्रियाएँ कविता के आवश्यक तत्व है। ये कविता के विषय हो सकते है, तत्त्व नहीं है, यद्यपि वे उनके जीवन से सम्बन्ध रखते है। जान पड़ता है, समालोचक इनका अन्तर नहीं जानता या मानता । साहित्य अथवा काव्य के तीन ही तत्त्व है- भावतत्त्व, कल्पनातत्त्व और बुद्धितत्त्व । ये सभी को विशेषतः पाश्चात्य समीक्षको और विचारकोंको मान्य है। प्रतिभा-ज्ञान भी एक विलक्षण तत्त्व है, जिसका कल्पना से पृथक् अस्तित्व है। उक्त प्रगतिवादी रस-परिपाटी को कविता की गति मे बाधक समझते है; पर अन्य कट्टर प्रगतिवादी रस को कविता के लिए आवश्यक समझते है। आप रूढ़ियो को तोड दे, अन्धविश्वात को अंधे कुएँ मे डाल दे, अतीत को तलातल मे उतार दे और प्राचीन परम्पराओ को परलोक मे पार्सल कर दे, यदि समाज का मंगल हो । इसमे किसी को आपत्ति क्यो होगी। पर, साहित्य-काव्य को प्रोपगैंडा का रूप न दे। देखिये, आपके कामरेड क्या कहते है- क. हमारे वर्तमान जीवन मे अतीत की नीलिमा और भविष्य की लालिमा की झॉकी मिलती रहती है। इसलिए, अतीत के निष्कासन से वर्तमान की व्याख्या नही हो सकती। ख. कोई भी साहित्य साम्प्रदायिक रंग मे रेंगकर, किसी दल-विशेष के गले की आवाज बनकर कुछ काल के लिए उसका प्रचार ( propaganda) तो अवश्य कर सकता है, पर सहृदय के गले का हार नहीं हो सकता । (इसमे 'सहृदय' शब्द ध्यान देने योग्य है।)