पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/२६८

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१८२ काव्यदर्पण ___ काव्यगत रस-सामग्री-(१) नायक आश्रय, (२) नायिका श्रालंबन, (३) किन्नरियों-सा रूप उद्दीपन, (४) चुम्बन अनुभाव, (५) आवेग चपलता, मद आदि संचारी और ( ६ ) रति स्थायी भाव हैं। इनसे शृङ्गार रस ध्वनित होता है। रसिकगत रस-सामग्री-(१) पाठक आश्रय, (२) नायक बालंबन, (३) चुम्बन, अंगो में लिपटना आदि उद्दीपन, (४) हर्ष-सूचक शारीरिक चेष्टा, रोमांच आदि अनुभाव, (५) हर्ष, आवेग श्रादि संचारी, (६) रति स्थायी भाव है। संयोग शृङ्गार जहाँ नायिका की संयोगावस्था में पारस्परिक रति होती है; पर संभोग-सुख प्राप्त नहीं होता, वहाँ यह होता है। एक पल मेरे प्रिया के दृग पलक थे उठे ऊपर सहज नीचे गिरे । चपलता ने इस विकपित पुलक से, दृढ़ किया मानो प्रणय-सम्बन्ध था।-पंत इसमें आलंबन नायिका, नायिका का सौन्दयं उद्दीपन, नायिका का निरीक्षण अनुभाव, लज्जा आदि संचारी तथा रति स्थायी हैं। यहां संयोग-सुख की ही प्राप्ति है, संभोग-सुख की नहीं, क्योंकि प्रिय को प्रिया को प्राप्ति नहीं हुई। अधिकतर रस-सामग्री का समग्र उल्लेख नहीं पाया जाता । कवियो का अभिप्रेत समझकर प्रसंगानुसार उसको कल्पना कर ली जाती है, उसका अध्याहार हो जाता है। सर्वत्र काव्यगत और रसिकगत रसखामग्री का भेद नहीं किया गया है। वर्णनानुसार इसका भेद कर लेना चाहिए। दोऊ जने दोऊ के अनूप रूप निरखत पावत कहूँ न छवि सागर को छोर हैं । fचतामनी' केलि के कलानि के विलासनि सों दोऊ जने दोउन के चित्तन के चोर हैं। दोऊ जने मंद मुसकानि सुधा बरसत । दोऊ जने छके मोद मद दुहुँ ओर हैं। सीताजी के नैन रामचन्द्र के चकोर भये राम नैन सीता मुख चन्द्र के चकोर हैं। इसमें राम सौता दोनों बालंबन हैं, और उद्दीपन है दोनों की मुस्कुराहट श्रादि धाएं। चंद्र-चकोर की भाँति एक दूसरे का मुंह देखना आदि अनुभाव हैं।