पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/२७२

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काव्यदर्पण करुण रस और करुण विप्रलम्भ में अन्तर यह है कि जब नायक-नायिका को मृत्यु वा मिलन की असंभवता पर रति की प्रतीति होती है तब करुण-विप्रलम्भ होता है और करुण रस में ऐसी बात नहीं होती। विप्रलंभ में दस काम-दशायें होती हैं-अभिलाष, चिन्ता, स्मृति, गुणकथन, उद्वःग, प्रलाप, उन्माद, व्याधि, जड़ता और मति । इनमें चिता, स्मरण, उन्माद, व्याधि, जड़ता और मरन वैसे ही हैं जैसे संचारी में। शेष चार में से दो के उदाहरण दिये जाते हैं- १ काम-दशा में अभिलाष- आते अपने कोमल कर से मेरा अंक मिटा देते । आते मेरे घट का जीवन हाथों से ढरका देते ॥ आते छाया-चित्र नयन परदे में पुनः खींच लेती। हो आनंद-विभोर सदा को अपने नयन मींच लेती ॥-भक्त २ काम-दशा में गुणकथन- राधा-देखती हूँ सभी बंधन, शक्तियाँ, मर्याद - सीमा, अवधि सारी तोड़ डाली इस अलौकिक व्यक्ति ने प्रा। विशाखा-गूजती है कान में ध्वनि प्रतिक्षण, वह रूप, वह छवि, नेत्र में सब खो गया है, हो गया है कृष्णमय जग । -उ० शं० भट्ट पाँचवीं छाया रौद्र और वीर रस-शंकापक्ष बहुतों का विचार है कि वीर और रौद्र दोनों रस प्रायः एक-से हैं। इससे इनके पृथक्-पृथक् रखने में कोई स्वारस्य नहीं। दोनों के हो बालंबन शत्रु हो हैं और शत्र को चेष्टाएँ ही दोनों के उद्दीपन' । उग्रत्ता, अमष, आवेग आदि अनेक संचारी भाव भी दोनों के एक ही हैं। केवल अनुभाव में कुछ भिन्नता है- १ वीर-'आलबनविभावास्तु विजेतव्यादयो मताः।' रौद्र-'आलंबनमरित्र' वीर-विजेतव्यादिचेष्टाद्याः तस्योद्दीपनरूपिणः रौद्र-तच्चेष्टोद्दीपनं मतम् ।-सा० द० २ रौद्र और यावेगोत्साइवियोधामपंचापल्लादिव्यभिचारी बीर-पुतिस्मृत्योन यगमिर्षमत्यावेगह दिव्यभिचारी | काव्यानुशासन