पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/२७८

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११२ काव्यदर्पण पराक्रम, आत्मरक्षा, निर्भयता, युद्ध, साहस आदि के कार्य करने में वीरता प्रकट होती है। समाज में पद-पद पर वोरता-प्रदर्शन की आवश्यकता है । कोई किसी अबला पर अत्याचार होते देखकर उसके प्रतिकार के लिए आगे बढ़ता है और घायल होकर मर जाता है। वह क्या किसी वीर से कम है ? कोई डूबते हुए बच्चे को बचाने में स्वयं डूब जाता है। क्या वह वीर नहीं ? शक्तिशून्य अत्याचारी के अत्याचार को क्षमा कर देना शक्तिशाली की सच्ची वीरता नहीं है ? शत बार है । शत्रु से सच्चा व्यवहार भी सच्ची वीरता है, जो गांधीजी की इस उक्ति से झलकती है- "अगर किसी ऐसे भी पुरुष को विषधर काट खाय, जो अपने मन में मेरे प्रति शत्रुता का भाव रखता हो तो मेरा यह कर्तव्य है कि फौरन उसके विष को चूसकर उसकी जान बचा लूं।" ___ यही सच्ची वीरता है, यहो सच्ची चिभेलरी ( chavalry ) है। जीवन एक प्रकार का युद्ध है और इसमें शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक युद्ध बराबर चलता ही रहता है। सभी प्राणी किसी न किसी रूप में इसमे अपनी शक्ति के अनुरूप भाग लेते है। बीर रस का स्थायी उत्साह है। उत्साह-प्रदर्शन की कोई सीमा नहीं बांधी जा सकती। इसोसे इसके अनेकानेक भेद किये गये हैं। इतने भेद किसी रस के नहीं। मनुष्य के धृति, क्षमा, दम, अस्तेय, शौच, इन्द्रियनिग्रह, बुद्धि, विद्या, सत्य, अक्रोध आदि जितने गुण हैं, मनुष्य को जितने परोपकार, दान, दया, धर्म आदि सुकम हैं और ऐसे ही जितने अन्यान्य विषय है, सभी मे वीरता दिखलायी जा सकती है। किसी विषय में संलग्नता, अतिशयता, साहसिकता का होना हो तो उत्साह है। किसीको किसी विषय में अाधारण योग्यता की शक्ति हो वह उस विषय में वीर है। आठवीं छाया वीर-रस-सामग्री जिस विषय में से जहाँ उत्साह का संचार हो अर्थात् उत्साह-भाव का परिपोष हो वहाँ वीर रस होता है। आलंबन विभाव-शत्रु, दोन, याचक, तीर्थं, पर्व आदि । उद्दीपन विभाव-शत्रु का पराक्रम, याचक को दोन दशा आदि । अनुभाव- रोमांच, गर्वीलो वाणो, आदर-सत्कार, दया के शब्द आदि ।