पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/२८४

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दसवीं छाया भयानक रस भयंकर परिस्थिति के कारण भय उत्पन्न होता है। इसके मूल में संरक्षण को प्रवृत्ति है । यह जीवधारीमात्र में होता है । भय का कारण प्राण गँवाना या शारीरिक कष्ट उठाना या धन-जन की हानि या ऐसा ही अन्य दुःखदायक कार्य होता है। इसका मन पर सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है। भय सहचर भावना है और उसकी सहज प्रवृत्ति पलायन या विवर्जन है। भय का सामना करने की शक्ति न होने के कारण भागने को बाध्य होना पड़ता है। ___ भयदायक वस्तुओं में व्यक्ति और विषय दोनों आ जाते हैं । इनको विकरालता और प्रबलता आदि ही भय के कारण होते हैं। लोकसमाज के अपवाद आदि से भी भय होता है। जिससे हानि हो उसीसे केवल भय हो, यह बात नहीं। प्रेमपात्र रुष्ट न हो जाय, इससे प्रेमी को भय होता है। बाल्यकाल का जूजू वा भकोल सयाने होने पर भयदायक नहीं रहते। इससे अवस्था-विशेष भी भयदान का कारण हो सकती है। बहुतों को भयानक जन्तु भय के कारण न होकर आनन्ददायक बन जाते हैं। सरकस के शेरो और बाघों को खेलाने में जानवर के खेलाड़ियों और सॅपेरों को भय नहीं होता । साधु बाबा भी बिल्ली की भांति एक शेर को पाल लेते हैं। सारांश यह कि जिससे हानि वा दुःख पहुँचना अनिवार्य है उससे भय होता है और जहाँ इन दोनों को अनिश्चयता रहती है वहाँ आशका कहलाती है। ___ स्वाभाविक भीरता कायरता है और धर्मभीरता आस्तिकता है। भय का प्रभाव शरीर और मन दोनो पर पड़ता है, जिससे मुंह सूख जाता है और मन किंवत्तव्य- विमूढ़ हो जाता है। कुछ भय वास्तविक होते हैं और कुछ कल्पित तथा भ्रम- जनित । यथार्थता ज्ञात होने से ये दोनों भय दूर हो जाते हैं। भव के समय साहस और धैर्य से काम लेना आवश्यक है। जो साहसी और शूर होते हैं वे निर्भय रहते हैं। भयानक रस मनुष्य को अधीर बनानेवाला है। इसमें शत्र भी मित्र हो जाता है और मित्र भी शत्र । प्रबल श्रातक मनुष्य को शिथिल बना देता है और उससे आत्मरक्षा के भाव लुप्त हो जाते हैं। समाज में शृङ्खला रखने के लिए भय को आवश्यकता है। बालकों में भय का भाव भरना या भय द्वारा शिक्षा देना उन्हें निर्मल बनाना है। x