पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/२८६

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२०० काव्यदर्पण भर वर कापत कुतुबसाह गोलकुण्डा हहरि हबस भूप भीर भरकति है। राजा शिवराज के नगारन की धाक सुमि केते पादसाहन की छाती दरकलि है।-भूषण इसमें बलवान् शत्रु शिवराज आलंबन, नगारन की धाक सुन उद्दीपन, बीजापुर-पति का विलखना श्रादि अनुभाव और त्रास, शंका आदि संचारी हैं। यहाँ भयानक रस की अभिव्यक्ति तो है, पर भूषण का अभीष्ट शिवाजी को वीरता की प्रशंसा करना है। इससे यहां भयानक रस नहीं, राजविषयक रति-भाव है । ग्यारहवीं छाया अद्भुत रस नारायण पण्डित अद्भुत रस को ही प्रधानता देते हैं, जैसा कि कहा जा चुका है। कारण यह कि रन का सार चमत्कार है और उस चमत्कार का सार-स्वरूप अद्भुत रस है । चमत्कार में विलक्षणता रहती है और वही चित्ताकर्षण करती है । __ अभिनव गुप्त के मत से "चमत्कार शब्द के तीन अर्थ है । एक अर्थ है प्रसुप्त वासना के साथ साधारणीकरण का मिलन-जनित वा परिचय-जनित एक विशिष्ट चेतना का उद्बोध ( Aesthetic attitude of the mind )। दूसरा है चमत्कार-जनित अलौकिक आहाद। और, तीसरा है चमत्कार द्वारा ही उद्भुत कम्पपुलकादि शारीरिक विकार ।" "उसको साक्षात्कार कहा जा सकता है अथवा मन का अध्यवसाय । निश्चयास्मिका वृत्ति भी उसे कह सकते हैं, संकल्प वा स्मृति मी कह सकते हैं, अथवा स्थूर्ति वा प्रतिभा भी। " ___ अभिप्राय यह कि चमत्कार एक प्रकार की स्फूर्ति है वा प्रतिभा। इसी रूप से चित्त में इसका उदय होता है । मम्मट ने चमत्कार शब्द का आस्वाद वा चव्यं- मालता यही अर्थ किया है । किसी-किसी ने सौन्दर्यात्मक विशिष्ट बोध को चमत्कार कहा है। पर विश्वनाथ चमत्कार का अर्थ हृदय-विस्तार कहते हैं। उसे आश्चर्य ( wonder ) भी कहते हैं । विश्वनाथ का मत यह है कि रस में चमत्कार प्राण- रूप है वह चमत्कार विस्मय ही है । अर्थात् सारे रसो में प्राण-स्वरूप एक चमत्कार ( sublemity) रहता है। १ 'नाट्य-शास्त्र' टीका, पृष्ठ २८१ गायकवाड-संस्करण २ बमत्कारचित्रविस्तारको विस्मयापरपर्यायः । सा० ०