पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/२९४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२०८ काव्यदर्पण अनुभाव-रुदन, उच्च वास, छाती पीटना, मूर्छा, भूमिपतन, प्रलाप, दैवनिन्दा आदि। संचारी भाव-व्याधि, ग्लानि, मोह, स्मृति, देव, चिन्ता, विषाद, उन्माद, आदि । स्थायी भाव-शोक । प्रियविनाशननित, प्रियवियोगजनित, धननाशजनित, पराभवमनित आदि करुण रख के मेद होते हैं। जो भूरिभाग्य भरी विदित थी अनुपमेय सुहागिनी, हे हृदय-वल्लभ ! हूँ वही अब मैं महा हतभागिनी। . जो साथिनी होकर तुम्हारी थी अतीव सनायिनी, है अब उसी मुझसी जगत में और कौन अनाथिनी !-गुप्त काव्यगत रस-सामग्री-अभिमन्यु का शव आलंबन है। वौर-पत्नी होना, पति की वीरता का स्मरण करना आदि उद्दोपन है। उत्तरा का क्रन्दन अनुभाव है। स्मृति, दैन्य, चिन्ता आदि संचारी है। इनसे परिपुष्ट स्थायी-भाव शोक से करुण रस वनित होता है। रसिकगत रस-सामग्री उत्तरा भालेबन, उसका पूर्व के सुख-सौभाग्य का स्मरण उद्दीपन, पद्य-रूप में कथन अनुभाव और मोह, विषाद, चिता आदि संचारी हैं। प्रिय पति वह मेरा प्राणष्यारा कहाँ है ? दुसनलनिधि डूबी का सहारा कहाँ है ? लख मुख जिसका मैं आज लौ जी सकी हुँ' वह हक्य हमारा नैनतारा कहां हैं ? -हरिऔध कृष्ण श्रावन, दुःख का सहारा होना उद्दोपन, मुख देखकर जीना अनुभाव और स्मृति, विषाद आदि संचारी हैं। ममी तो मुकुट बॅगा था माथ हुए कल ही हलदी के हाथ, खले भी न थे लाज के बोल खिले भी चुम्बनशून्य कपोल, हाय रुक गया यहीं संसार बना सिन्दूर अंगार।-पंत पति-वियोग काव्यगत पावन है और विधवा रसिक-गत । पति की वस्तुओं का दर्शन काव्यगत और हलदी के हाथ होना, संसार का रुक जाना अर्थात् चूड़ी पहनना, सुहाग को विदी लगाना आदि का अभाव हो जाना काव्यगत उद्दीपन हैं । रुदन श्रादि अनुभाव और चिता, विषाद आदि संचारी हैं । . , परितृपं हि वाहि महिं मार सकत कोइ । ___.. हम संसल हुन पनि उच्चरहिं बीन होइ॥