पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/३१७

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पाँचवाँ प्रकाश रसाभास आदि पहली छाया रसाभास जहाँ रस की अनुचित प्रवृत्ति से अपूर्ण परिपाक होता है, वहाँ रसाभास समझना चाहिये। शृङ्गार-रसा भास-अनौचित्य रूप से रम की प्रवृत्ति निम्नलिखित परिस्थितियों में होती है-(१) परस्त्रोगन प्रेम, (२) स्त्री का परपुरुष से प्रेम, (३) स्त्री का बहुपति-विषयक प्रेम, (४) निरिन्द्रियों ( नदी-नालों-लता-वृक्षो आदि ) में दाम्पत्य- विषयक प्रेम का आरोप, (५) नायक-नायिका में एक के प्रेम के बिना ही दूसरे का प्रेम-वर्णन, (६) नीच पात्र में किसी उच्च कुलवाले का प्रेम तथा (७) पशु, पक्षी, आदि का प्रेम-वएन । आधुनिक कवि भी रसाभास के बड़े प्रेमी हैं। पर-स्त्री में पर-पुरुष की रति से शृङ्गार-रसाभास मै सोयी थी नहीं, छिपा मत मुझसे कुछ भी छोरी। ली थी पकड़ कलाई उनने, देती थी जब पान, तूने मेरी ओर किया इंगित कि गयी मै जान, तब वे बोले दीख रही मै जनम जनम की भोरी। उसके बाद उढ़ाया उनने मुझे स्वयं आ शाल, तू हँस पायी भी न तभी सट काटे तेरे गाल, किया तनिक सीत्कार कहा उनने कि खूब तू गोरी ! -जा० ब० शास्त्री काव्यगत रससामग्री-(१) इस कविता का आश्रय है रेलयात्री नवविवाहित युवक । (२) उसका बालंबन है युवती 'विन्दो' दासी। (३) रति स्थायी भाव है। (४) उद्दीपन हैं दासी को युवावस्था और पान देने की प्रक्रिया । (५) संचारी भाव हैं आवेग, चपलता, शंका, त्रास आदि। (६) अनुभाव हैं सौत्कार, रोमांच आदि। रसिकगत रससामग्री-(१) रति स्थायी भाव है। (२) श्राश्रय रसिक है। (३) बालंबन है विवाहित युवक । ( ४ ) उद्दीपन हैं विवाहित स्त्री को शाल उदाना, पसी हुई दासी का छटपटाना आदि । (५.) संचारी हैं लज्जा, हर्ष, आवेग आदि । (६) अनुभाव है इषंसूचक शारीरिक चिह्न, चेष्टा श्रादि ।