पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/३२३

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काव्यदेपण 'किमि सहि जात अनख तोहि पाही ।'-ईर्ष्या 'प्रिया वेगि प्रकटत कस नाहीं ।'-उत्कण्ठा आदि अनेक भाव समकोटिक हैं और साथ ही चमत्कारक भी है। उपयुक्त असंलक्ष्यक्रम के पाठ भेदों के अनेक भेद हो सकते हैं, जिनके लक्षण और उदाहरण लिखना सर्वथा दुष्कर है । जैसे, शृङ्गार के एक भेद संभोग में ही परस्परावलोकन, करस्पशं, आलिंगन आदि से मनसा, वचसा तथा कर्मा अनेक भेद हो जायेंगे, जिनकी संख्या अगम्य होगी। इसीलिए, प्राचार्यों ने इसका एक ही भेद माना है।