पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/३४

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"यह गननचुम्बी महाप्रासाद" ।-साकेत - यहाँ गगनचुम्बी मानवी व्यापार नहीं है। यहाँ प्रासादों की उच्चता प्रदर्शित करना ही अभीष्ट है जो लक्ष्यार्थ से प्राप्त होता है । चुम्बन का अर्थ 'छूना' लिया जा सकता है। यहाँ चेतनता के प्रदर्शक चुम्बन का भाव नहीं है । प्रायः ऐसा ही यह भी है- "तेरा अधर-बिचुम्बित प्याला" ।-महादेवी काव्य और भाषा कार्लाइल ने जो यह कहा है कि "ग्रन्थ-विशेष के मूल्य-निद्धारण में भाषा-शैली का कोई मूल्य नही" वह अनुचित है; क्योंकि "रीति को हम जैसे काव्य की श्रात्मा मानते हैं"२ वैसे, एक विद्वान भी यही कहते हैं कि “रचना-प्रणाली विचार को महत्त्व और जीवन प्रदान करती है" | रचना-प्रणाली से शब्दों की स्थापना- प्रणाली समझी जाती है। रचना-भङ्गी नीरस कविता को भी सरस बना देती है । इसीसे यह उक्ति सार्थक होती है कि 'भाषा-शिक्षा के लिए काव्य पढ़ना चाहिये । काव्य-भाषा को अत्यन्त अलंकृत, दार्शनिक वा दुरूह बनाना काव्यामृत- पिपासुत्रों को तुब्ध और निराश करना है। यही नहीं, इससे काव्य-रचना का जो उद्देश्य है वह भी सिद्ध नहीं होता। रचना मे कल्पना, अलंकार आदि को वहीं तक प्रश्रय देना चाहिये जहाँ तक भाव को सुरूप बनाया जा सके; अन्यथा भाव का सौन्दर्य नष्ट हो जाता है । वस्त्र का हलका गुलाबी रंग जैसा चित्ताकर्षक होता है वैसा गाढ़ा लाल रंग नहीं होता । ____ केवल मधुर शब्दों के रखने से कविता न तो मधुर होती है और न कठिन शब्दों के रखने से गंभीर । शब्द-स्थापना में दो दृष्टियों से विचार करना चाहिये । एक तो शब्द और वाक्यखण्ड के निर्वाचन की दृष्टि से दूसरे पत्तियों में उनके स्थान की दृष्टि से । इस प्रकार कविता भावव्यञ्जक तथा सुललित हो सकती है। शब्दों की ध्वनि, उच्चारणसुलभ गतिशीलता तथा सार्थकता पर भी ध्यान जाना आवश्यक है। उपबन की जगह वन का प्रयोग उसके अर्थ और सौन्दर्य को नाश कर देता है। 1. Style has little to do with the worth or un worth of a book. २ रीतिरात्मा काव्यस्य । काव्यालंकार । 3. Style gives value and courrency to thought.