पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/३४७

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काव्य के भेद (प्राचीन) जैसे, सोहर श्रादि । इनमें हमारी भावना और संस्कृति का अक्षय भण्डार भरा है। देहातों में पुरुषों के प्रबलित गोत आल्हा-ऊदल, कुअर-वृजभान, लोरिकायन श्रादि हैं। नागरिक गीत साहित्यिक हैं। इनके रचयिता अपने गीतो के कारण अजर- अमर है। 'गीत-गोविन्द' के रचयिता पीयूपवर्षी जयदेव, सहस्रो गीतों के रचयिता मैथिनकोकिल विद्यापति, सूरसागर के रचयिता सूरदास, गीतावलियों के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास तथा अनेक प्रकार के गीतों के रचयिता अनेक भक्त कवि यशः शेष होने पर भी हम रे बोच जोवित-जागृत हैं। आधुनिक गीति कविता भिन्न प्रकार की होती है, जिसका अन्यत्र वर्णन है। शैली के भेद से काव्य तीन प्रकार का होता है-१ पद्य काव्य, २ गद्य काव्य और २ मित्र काव्य या चम्पू काव्य । छन्दोबद्ध कविता को पद्य कहते हैं। पद्य काव्यों में कवियों को कुछ स्वतन्त्रता रहती है और कुछ परतन्त्रता । स्वतन्त्रता इस बात की है कि वे छन्द में यथारुचि पद-स्थापन कर सकते हैं और परतन्त्रता इस बात की है कि वे छन्द के बन्धन में बंधे रहते हैं। श्राज यह भी बन्धन तोड़ दिया गया है और अमित्राक्षर या अतुकान्त की बात कौन चलावे स्वतन्त्र वा मनमाने छन्द को सृष्टि हो रही है। पर छन्दोबद्ध रचना का स्वारस्य इनमें नहीं रहता। इन्हें पद न कहकर पद्याभास वा वृत्ति-गन्धि गद्यकाव्य कहना हो उचित प्रतीत होता है। अनेक गद्य काव्यों के कवियों के गद्य काव्यों में और स्वतन्त्र या मुक्त छन्दों में लिखे पद्य काव्यों में कोई विशेष अन्तर नहीं जान पड़ता। गद्य काव्य छन्द के बन्धन से मुक्त हैं ; तथापि उसमें कवियों के लिए कविता करना अत्यन्त कठिन है । कारण इसका यह है कि पद्य में एक पद भी चमत्कारक हा तो सारा पद्य चमक उठना है। यह बात गद्य में नहीं है। गद्य जब तक श्राद्यन्त रमणीय और चमत्कारक नहीं होता तब तक वह काव्य कहलाने का अधिकारी नहीं होता। गद्य काव्य के एक-दो वाक्य वा वाक्य-खण्ड सरस वा सुन्दर होने से सारी- को सारो गद्य-रचना कविता नहीं हो सकती। पद्यकविता-जैसी इसमें शब्दों को तोड़-मरोड़ करने की स्वतन्त्रता भी नहीं रहती। बल्कि प्रत्येक शब्द चुनकर रखने पड़ते हैं और वाक्य के संगठन का पूरा ध्यान रखना पड़ता है। अतः, पद्य में कविता लिखने की अपेक्षा गद्य में काव्य-रचना करना कहीं कठिन कार्य है। कहा है 'गद्य कवीनां निकष वदन्ति'-गद्य को कवि की कसौटी कहते हैं। गद्य-काव्य लिखने- वालों में बाबू ब्रजनन्दन सहाय, रायकृष्ण दास, श्री दिनेशनन्दिनी चोरड्या आदि का नाम लिया जा सकता है। गद्य-पद्य मिश्रित रचना को चंपू काव्य कहते है। हिन्दी में चयू-काव्य का बहुत