पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/३५२

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चौथी छाया अर्थानुसार काव्य के भेद कवि को कृतियाँ साधारण कोटि की नहीं होतीं। उनमें सरसता की, श्रानन्द- दायकता की व्यंजकता को मात्रा अधिक रहती है। अतएव, सरसता आदि की तुला पर जिसका वजन का वा भारी होगा वह काव्य भी उनी अनुपात से अमकृष्ट या उत्कृष्ट होगा। इस दृष्टि से काव्य के चार भेद होते हैं-१ उत्तमोत्तम, २ उत्तम, ३ मध्यम और ४ अधम । इन्हें क्रमशः १ ध्वनि, २ गुणीभूत व्यंग्य, ३ वाच्यलंकार और ४ वाच्यचन कारयुक्त शब्दालं कार को संज्ञा दी गयी है। धनि-काल प्रथम श्रेणी का कहा जाता है । गुणीभूत व्यंग्य दूसरी कोटि का काव्य है। इसमें व्यग्य वाच्य से उत्कृष्ट, किन्तु ध्वनि से अपकृष्ट होने के कारण मध्यम से उच्चकोटि का होकर उत्तम हो जाता है । वनि में व्यग्य प्रधान रहता है और गुणीभूत में व्यंग्य गौण रूप से, अप्रधान रूप से । यह वाच्यार्थ के समान चमत्कार वा उससे न्यून चमत्कारक होता है। वाच्य अलंकार में अर्थगत चमत्कार अवश्य रहता है ; किन्तु उपमा, रूपक श्रादि के निबंधन की तत्परता उसे सामान्य बना देती है। शब्दालंकार से उत्कृष्ट और व्यंग्य से अपकृष्ट होने के कारण इसे मध्यम कहा जाता है। यह तीसरी श्रेणी का काव्य है। शब्दालंकार में जहाँ अर्थ-चमत्कार का थोड़ा भी निर्वाह है वहां मुख्यतः वर्णों या शब्दों पर हो कवि-दृष्टि केन्द्रित रहती है। अतएव, यह चौथो श्रेणो का काव्य माना जाता है। ___ध्वनिकाव्य और गुणीभूतव्यंग्य काव्य के लक्षण और उदाहरण दिये जा चुके हैं । यहाँ शेष दो के उदाहरण दिये जाते हैं। वाच्य-अलंकार काव्य जहाँ साक्षात् वाच्य-अर्थ पर चमत्कार रहे, व्यंग्य का आलोक नहीं हो अथवा हो भी तो वह आत्म-प्रतिष्ठा नहीं रक्खे, वहाँ वाच्य-अलंकार काव्य होता है । इसके उपमा, रूपक आदि अनेक भेद हैं । ____ वाच्य-अलंकार इन्द्र जिमि जंभ पर, वाडव सुअंब पर, रावण सुदंभ पर रघुकुलराज हैं। पौन बारिवाह पर, शंभु रतिनाह पर, ज्यों सहस्रबाहु पर राम द्विजराज हैं। .' दावा दुमदंड पर, चीता मृगझुण्ड पर 'भूषण' वितुण्ड पर जैसे मृगराज हैं। तेज तम अंश पर, कान्ह जिमि कंस पर, त्यों विपच्छवंश पर शेर शिवराज हैं । - यह शिवाजी की भूषण-कवि-कृत प्रशंसा है। इस पद्य में उपमाओं की माला- सो गुथ दी गयी है। इसी बल पर काव्य की मधुरता है। यहाँ ध्वनि या गुणीभूत