पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/३५६

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२७२ काव्यदर्पण आधुनिक कवि निश्चित वस्तुओं का त्याग और अनिश्चित वस्तुओं के चित्र- चित्रण का प्रयास करते हैं। इन वस्तुओं-काव्योपादानों में कुछ तो ऐसे हैं जो असाधारण प्राकृतिक पदार्थ हैं। जैसे निझर, उषा, रश्मि श्रादि। उनकी दृष्टि साधारणतः तरु, लता, पुष्प, पशु, पक्षी आदि प्राकृतिक पदार्थों की ओर नहीं जाती। वे ऐसे विषय भी चित्र-चित्रण के लिए लेते हैं, जिनका कोई रूप ही नहीं होता। जैसे, सौंदर्य, स्मृति, शोक, मोह, लज्जा, स्वप्न, वेदना आदि । कल्पना-कुशल कवि इन भाववाचक संज्ञाओं को ऐसे रूप प्रदान करते हैं, जिनसे आँखों के सामने एक दृश्य उपस्थित हो जाता है- एक चित्र झलक जाता है। दृश्यो के चित्र- चित्रण में कला की वह महत्ता नहीं, जो भावों के चित्र-व्यंजना द्वारा चित्रण में-प्रदर्शन में है। एक साधारण दृश्य का असाधारण चित्र देखिये- शिलाखंड पर बैठी वह नीलाञ्चल मृदु लहराता था मुक्तबंध संध्या समोर सुन्दरी संग कुछ चुपचाप बातें करता जाता और मुस्कुराता था। विकसित असित सुवासित उड़ते उसके कुंचित कच गोरे कपोल छू-छूकर विपट उरोजों से भी वे जाते थे।-निराला चित्र-व्यंजना-शैली में भावों का यह वैसा सुन्दर और हृदयग्राही दृश्य का प्रदर्शन है। कवि रजनी बाला से प्रश्न करता है- इस सोते संसार बीच जग कर सज कर रजनी बाले ! कहाँ बेचने ले जाती हो ये गजरे तारोंवाले ? मोल करेगा कौन सो रही हैं उत्सुक आंखें सारी मत कुम्हलाने दो सूनेषन में अपनी निधियां प्यारी॥ पुनः कवि तारावलियों का प्रतिबिम्ब निझर जल में देखता है तो उसका चित्र थों खड़ा करता है- निर्धार के निर्मल जल में ये गजरे हिला-हिला धोना । लहर-लहर कर यदि चूमें तो किंचित विचलित मत होना। होंने दो प्रतिबिम्ब-विचुम्बित लहरों ही में लहराना। ली मेरे तारों के गजरे निर्झर स्वर में यह गाना ।। जब प्रातः काल में ताराओं की ज्योति मंद पड़ने लगी, तब कवि गजरों की कता का यह चित्र खड़ा करता है- सकि प्रमात तक कोई आकर तुमसे हाय ! न मोल.करे। फूलों पर झोस रूप में विखस देना सब गजरे ॥ रामकुमार वर्मा