पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/३६०

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२७६ काव्यदपण असाधारण बनाना, ६ घटनाओं के चित्रण में स्वाभाविकता और मौलिकता का लाना, १० साहित्यिक सत्य का होना, ११ कथा-विस्तार और घटना-विकास ऐसे होने चाहिये, जिनमें पाठकों की उत्सुकता की कमी न श्रावे, ३२ घटनाएँ संगत हो और अपकृत जान पड़े तथा साधारण-खी प्रतीत न हों और १३ देश, काल तथा पात्रों के विपरीत वर्णन न हों। उपन्यास के काल्पनिक, सामाजिक, ऐतिहासिक, राजनैतिक, धार्मिक आदि कई भेद होते हैं। इनके ऐसे तथा अन्यान्य प्रकार के भेद का कारण विषयों को मुख्यता ही है, जिसे उपन्यास-वस्तु कहते हैं । औपन्यासिक इन विषयों को उपन्यास का आधार मानते हैं और अपनी कुशल कल्पना से मनोरंजक बनाते हुए उपन्यास का रूप दे देते हैं। उपन्यास लिखने के ढंग अनेक हैं, जिनमें प्रधान है स्वतन्त्रतापूर्वक घटनाओं को क्रम-विकास करते हुए लक्ष्य पर पहुँचना। इसका दूसरा ढंग है पात्रों द्वारा ही औपन्यासिक वस्तु का क्रम-विकास करके अपना उद्देश्य सिद्ध करना। तीसरा है, लेखक तटस्थ रहकर वार्तालाप-द्वारा ही उपन्यास को गढ़े। पहले ढंग पर ही अधिकांश उपन्यास लिखे जाते हैं। दूसरे ढग पर 'चंद हसीनों के खतूत', 'कमला के पत्र' आदि कुछ उपन्यास लिखे गये। तीसरे ढंग के उपन्यास का अभाव है। अंत के दोनो ढगों पर अधिक उपन्यास न लिखने के कारण ये हैं कि लेखक स्वतन्त्रतापूर्वक वर्णन कर नहीं सकता और न पात्रों के चरित्र-चित्रण मे अपनी इच्छानुसार स्वतन्त्र होकर काम ले सकता है। ऐसे ही और भी अनेक कठिनाइयाँ हैं जो पहले ढंग में सामने नहीं पाती। लेखक सारी घटनाओं और पात्रों को स्वेच्छानुसार अपने पीछे लगा सकता है। दूसरा आवश्यक विषय है पात्र (character ), जिनसे उपन्यास की घटनाएं या व्यापार सम्बन्ध रखते है। पात्रों का चित्रण स्वाभाविक, वास्तव और सजीव होना उचित है, जिससे पाठकों को मानव जीवन की सच्ची झलक दिखाई पड़े और वे यह समझे कि हमारे- जैसे ये भी सुख-दुःख, ईर्ष्या-द्वेष, राग-विराग श्रादि का अनुभव करते हैं। पात्र-चित्रण में अलौकिकता और कृत्रिमता की गंध न आनी चाहिये। ऐसा होने से ही लेखक अपनी कृति में सफल हो सकता है और अपने पाठकों पर प्रभाव डाल सकता है। पात्रों के सजीव चित्रण से ही उसके साथ पाठको का मानसिक सम्बन्ध स्थापित हो यह चित्रण दो प्रकार का होता है-एक तो विश्लेषणात्मक और दूसरा अभिनयात्मक। पहले में लेखक स्वतन्त्रतापूर्वक स्वयं हो चारित्रिक व्याख्या करता है और उसपर मतामत भी प्रकट करता है । दूसरे में लेखक निरपेक्ष होकर पात्रों के