पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/३६४

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२८. काव्यदर्पण किसी वस्तु, दृश्य या विषय को लेकर जो वर्णन किया जाता है वह वर्णनात्मक निबन्ध है। ऐसे प्रबन्धों से पाठकों को तद्विषयक ज्ञान पूर्ण होता है । इसके लिए आवश्यक है कि लेखक कल्पना-शक्ति से काम ले, उसकी दृष्टि तीक्ष्ण हो तथा उसकी स्मरणशक्ति, अनुभव और अभ्यास प्रबल हो। वर्णनात्मक निबन्ध रुचिभिन्नता के कारण अनेक प्रकार के हो सकते हैं। ऐसे निबन्धों की भाषा परिमार्जित, रोचक और चित्रात्मक होनी चाहिए। शैली का सरल होना उत्तम है। विचारात्मक निबन्ध वे हैं, जिनमें गंभौर विवेचना और बोधवृत्ति की प्रधानता हो। इसके लिए आवश्यक है, स्वाध्याय, वाक्-चातुर्य, विवेचना-कौशल, तार्किक बुद्धि, प्रकाशन-योग्यता, विषय-ज्ञान तथा मननशीलता। सारांश यह कि जिस विषय का विचारात्मक लेख हो उसकी पूरी सयुक्तिक व्याख्या होनी चाहिए। ऐसे निबन्धों की भाषा का गम्भीर होना स्वाभाविक है। प्रबन्ध के सम्बन्ध में कहा गया है-जिचका अर्थ-सम्बन्ध बना रहे, ऐसा प्रबंध हूँढने ही से मिल जाय तो मिल जाय- अनुज्झितार्थसम्बन्धः प्रबन्धो दुरुदाहर नवीं छाया जीवनी या जीवन-चरित्र और यात्रा जीवनी या जीवन-चरित्र जीवनी और जीवन-चरित्र में जो यह भेद किया जाता है कि जीवन की मार्मिक वृत्तांतवाली रचना जीवनी है और जिस जीवनी में जीवन तथा चरित्र दोनों का मांगपूर्ण वर्णन हो वह जीवन-चरित्र है, अस्वाभाविक है। जीवन-चरित्र के चार रूप देखे जाते हैं-एक तो सर्वांगपूर्ण जीवनचरित्र है, जैसा कि 'तुलसीदास' आदि। दूसरा आत्मकथात्मक है, जैसा कि 'सत्य के प्रयोग' या 'आत्मकथा' आदि । तीसरा चरित्र-चित्रणात्मक है, जैसा कि द्विजनी को चित्ररेखा' आदि। इसे आजकल लाइफस्केच ( lifesketch ) कहा जाता है। चौथा व्यंग्य रूप में व्यक्ति विशेष का प्रदर्शन है, जैसा कि जयनाथ नलिन के लेखरूप में प्रकाशित व्यंग्यात्मक व्यक्ति-वैचित्र्य-चित्रण। ____दो-तीन प्रकार को जीवनियां और होती हैं जो यथार्थ जीवन-चरित्र नहीं कही पा सकती। एक तो आरोपात्मक होती हैं, जिनमें लेखक अपना ही जीवन दूसरे