पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/३६६

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दसवीं छाया गद्य-काव्य साहित्यिक उपन्यास और आख्यायिका के अनन्तर निबन्ध का स्वरूप सामने श्राता है; क्योंकि मनोरंजन का स्थान प्रथम और विचार का स्थान द्वितीय है । गद्य काव्य गद्य का सर्वाधिक विकसित रूप है। काव्य होने का कारण यह है कि उसमें भी चमत्कार, रस, कल्पना, कला-कौशल श्रादि काव्य के उपकरण वतमान रहते हैं। गद्य काव्य के रूप में उपन्यास भी हैं जैसे कि 'सौन्दर्योपासक', 'उद्भ्रान्त प्रेम', 'नवजीवन' आदि। कहानियाँ भी कविस्वमय होती हैं, जिनका अभाव हिन्दी में नहीं है। नाटक भी कवित्वमय होते है जैसे कि प्रसाद के नाटक। प्रवन्ध भी काव्यात्मक हो सकते हैं और होते हैं, किन्तु आधुनिक गद्य काव्य जिस विकसित रूप को लेकर हमारे सामने आता है, वह नूतन है। इन्हें मुक्तक भी कहा जाता है। ___ कवित्वमय निबन्ध के दो रूप दीख पड़ते हैं-एक गद्य-काव्य और दूसरा गद्य-गौत। यह गद्य-गीत गीति-कविता के समान ही होता है। अन्तर यह है कि गद्य-काव्य में कल्पना को प्रधानता होती है। उसमें अनेक भावों और रसों की अवतारणा की जा सकती है, पर गद्य-गीत में एक ही भाव की थोड़े-से संगीतात्मक शब्दों में अभिव्यक्ति होती है और तद्विषयक साधन से ही वह सम्पन्न रहता है। गद्य-गीत के श्रावश्यक साधन हैं-भावावेश, अनुभूति की विभूति और अभिव्यञ्जन-कुशलता। गद्य को गेयता अनिवार्य नहीं। संभव है, सुन्दर शब्दा- वलियों, अपूर्व वाक्य-विन्यास से कोई भिन्न लय उत्पन्न किया जा सके। गौति- कविता के समान अधिकतर गद्य-गीत अन्तवृत्तिनिरूपक ही होते हैं, जिनसे आत्माभिव्यञ्जन की मात्रा अधिक रहती है। वाह्यवृत्तिनिरूपक गद्य-गीतों में कवि केवल वस्तु के वाह्य रूप का ही निरीक्षक रह जाता है। कभी-कभी कवि के अन्तवृत्ति में वाह्यवृत्ति विलीन भी हो जाती है। रवीन्द्र बाबू की 'गीताञ्जलि' के गद्यानुवाद से हिन्दी में गद्य-गीत की नीव पड़ी और 'साधना' आदि कई भावात्मक गद्य-ग्रन्थों का हिन्दी में अवतार हुश्रा। आज- कल तो 'वंशोरव' आदि पुस्तकों में 'गद्य-गीत' का रूप और निखर आया है । गद्य गोतकारों को यह ध्यान रखना चाहिये कि गूढ भावात्मक गद्य-गीत यदि रागात्मक नहीं हुआ तो काव्य की श्रेणी में नहीं आ सकता, क्योंकि विचार-गाम्भीर्य गद्य को काव्य का रूप नहीं दे सकता। वह एक प्रकार का आध्यात्मिक ग्रन्थ हो जायगा । ___जो गद्य-गीत अलंकृत शैली या ललित शैली में लिखा जाता है वह बहुत ही मनोहारी होता है। आजकल के गद्य-गीत प्रायः 'उद्भ्रान्त प्रेम' की रीति पर