पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/३८१

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२६८ काव्यदर्पण तो गुण-हो-गुण का गाहक है ; कोई दोष-हो-दोष हूँढ़ता है और कोई गुण-ग्रहण- पूर्वक दोष-त्यागी भावक होता है।' __महाकवि भवभूति के नाटकों का, शताब्दियां बीत जाने पर भी जो आज समादर है वह या उत्त का कुछ अंश उन्हें उस समय प्राप्त नहीं, था जब कि उनकी रचना हुई थी। इसीसे वे दुःखित वे होकर कहते हैं-काल का समय का अन्त नहीं और पृथ्वी भी बड़ी है। किसी-न-किसो समय और कहीं-न-कहीं मुझ-जैसा कोई उत्पन्न होगा, जो मेरी कृति को समझेगा और उसका गुण गावेगा ; मुझ जैसा हो आनन्द उठावेगा। मूल में समानधर्मा जो विशेषण है वह ध्यान देने योग्य है। इससे यह व्यक्त होता है कि कवि और भावक का एक हो धर्म है। कवि अपनी कविता के मर्मज्ञ होने के कारण ही मर्मज्ञ भावक की आशा करता है। इस दशा में यह कहा जा सकता है कि कवि भावक है और भावक कवि । कवि केवल कविता करने के कारण ही कवि कहलाने का अधिकारी नहीं है, किन्तु कविता के तत्त्व को अधिगत करने के कारण भी। इससे इनमें भेद नहीं है । टेनिसन भी यही कहता है कि कवि को दुःख मत दो, तंग न करो; क्योंकि तुम इस योग्य नहीं कि उसको कविता को समझ सको, उसके मन की थाह पा सको । ___एक कवि को सूक्ति का आशय है कि हे ब्रह्मा ! अन्य पापों की बातें जितनी चाहो लिखो, पर अरसिक को कविता सुनाने की बात नहीं लिखो, नहीं लिखो, नहीं लिखो ४। इससे भी कवि के भावक होने की बात व्यक्त होती है। वह अपनी कविता को सरसता को समझता है तभी अरमिकों को कविता सुनाने से दूर रहने की मांग करता है। १ वागभावको भवेत्कश्चित् कश्चित् हृदयभावकः । साविकरानिकः कश्चित् अनुभावश्च भावकः ॥ गुणादानपरः कश्चित् दोषादानपरोऽपरः। गुणदोषाहृतित्यागपरः कश्चन भावकः || काव्यमीमांसा २ उत्पत्स्यते सपदि कोऽपि समानधर्मा कालोधयं निरवधिर्विषुला च पृथ्वी । मा० माधव 3 Vex not thou the poet's mind With thy shallow wit, Vex not thou the poet's mind For thou canst not fathom it, ४ इतरपापशतानि यथेच्छया वितर तानि सहे चतुरानन । अरसिकेषु कवित्व-निवेदनं शिरसि मा लिख मा लिख मा लिख ॥