पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/३८२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२६६ कवि और भावक यह एक पक्ष की बात है। दूसरा पक्ष कहता है कि कवि यदि भावक होता तो राजशेखर यह बात कसे कहते कि भावक कवि का मित्र, स्वामी, मंत्री, शिष्य, प्राचार्य और ऐसे ही क्या-क्या न है !' ___ जब भावक जनसमाज में कवि का गुण गाता है, उसका यशोविस्तार करता है तब वह उसका मित्र है। दोषापवाद से बचाने के कारण भावक कवि का स्वामी कहा जाता है । जब भावक कवि को अपनी भावना-द्वारा मंत्रणा देता है तब उसका मंत्री होता है। जब भावक जिज्ञासु-भाव से कवि-रचना में पैठता है तब वह शिष्य और जब देख-सुनकर उपदेश देता है तब उसका आचार्य बन जाता है । इस प्रकार कवि भावक से एकबारगी ही अलग हो जाता है। ___ एक कवि का कथन है कि बिना साहित्यज्ञों के रस, अलंकार आदि के पारखियों के कवियों के सुयश का विकास कभी संभव नहीं है। इस प्रकार भावक कवि का उन्नायक है। तुलसीदासजी कहते हैं- मणिमाणिक मुक्ता छबि जैसी; अहि गिरि गज सिर सोह न तैसी। नुप किरीट तरुनो तन पाई; लहहिं सकल सोभा अधिकाई । तैहि सुकवि कवित बुध कहहीं; उपजत अनत अनत छबि लहही। इनसे कवि और भावक को भिन्नता का सिद्धांत परिपुष्ट होता है। कवि अकबर को यह सक्ति भी कवि और भावक को भिन्न बताती है- हुआ चमन में हुजूमे बुलबुल किया जो गुल ने जमाल पैदा; कमी नहीं कद्रदा की 'अकबर' करे तो कोई कमाल पैदा। जिस दिन फूल ने अपना सौंदर्य-सौरभ फैलाया उस दिन वाटिका में बुलबुलों की भरमार हो गयी। कद्रदानों की-गुण-गौरव गानेवालों की गुणगाहकों को कमी नही। कोई कमाल को चीज पैदा करे तो! अपूर्व वस्तु का आविर्भाव तो करे ! एक कवि की सूक्ति भी इसी सिद्धात का समर्थन करती है- गुण ना हेरानो गुणगाहक हेरानो है। इस प्रकार इनके पक्ष-विपक्ष में साधक-बाधक प्रमाणों का अन्त नहीं है । पर, व्यवहारतः इनकी एकता और भिन्नता का भी थोड़ा-बहुत विवेचन हो जाना चाहिये। यह प्रायः देखा जाता है कि व्यक्ति-विशेष में विशिष्ट प्रतिभा होती है। कोई लेखक होता है तो कोई वक्ता, कोई नाटककार होता है तो कोई कहानीकार, कोई कवि होता है तो कोई विवेचक | तुलसीदास से लेकर उपाध्यायनी तक के कवि कवि १ स्वामी मित्रं च मंत्री च शिव्यश्चाचार्य एव च । कविर्भवति चित्रं किं हि तद्यन्न भावकः। -काव्यमीमांसा २ विना न साहित्यविदा पर गुणाः कथंचित् प्रथते कवीनाम् ।।