पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

हो सकते थे; पर जिस रूप में में लिखना चाहता था उसका बदलना अभीष्ट न था। इसी प्रकार किसी ने कुछ कहा और किसी ने कुछ। मै इन मित्रों का इसलिए आभारो हूँ कि उनको निर्दिष्ट पुस्तकों में से जिन पुस्तकों को नहीं पढ़ा था उन्हें पढ़ा, उनसे कुछ लाम भी अवश्य हुआ। पर वे भी मेरी गति को मोड़ न सकी ? उनसे यथेष्ट तात्त्विक लाभ न हुश्रा। इसी प्रकार किसी-किसी ने उसकी प्रशंसा के पुल बांध दिये और किसी-किसी ने निन्दा को नदी बहा दी। इन मित्रों ने भी एक. प्रकार से मेरा उपकार ही किया है। इस पुस्तक को प्रस्तुत करने में पाश्चात्य समीक्षा से भी लाभ उठाया गया है। फिर भी संस्कृत के आचार्यों के 'पाकर ग्रन्थों को ही मुलाधार रक्खा है । क्योंकि पाश्चात्य विचार या सिद्धान्त चक्कर काटकर इन्हीं सिद्धान्तों पर आ जाते हैं। 'रमणीयार्थ- प्रतिपादकः शब्दः काव्यम्' के अनुरूप हो तो रस्किन को यह व्याख्या है-'कविता कल्पना के द्वारा रुचिर मनोवेगो के लिए रमणीय क्षेत्र प्रस्तुत करतो है। भूमिका तथा मूल पुस्तक में ऐसे अनेक उद्धरण उपलब्ध होंगे जो हमारे कथन की पुष्टि करेंगे। पुस्तक की भूमिका को तुलनात्मक दृष्टि से तौलने के लिए तूल दिया गया है । उसमें जो सामग्रो एकत्र की गयी है वह इस दृष्टिकोण से मनन करने के योग्य है । आप उसमें उन तत्त्वों को पावेंगे, जिनकी आलोचना का प्रारम्भ अभी-अभी पाश्चात्या साहित्य में हुआ है। आठ-नौ सौ वर्ष पहले अभिनवगुप्त अपनी आलोचना में जो बातें लिख गये हैं वे आधुनिक युग की पाश्चात्य आलोचना में पायी जाती हैं। शुक्लजी तो रिचार्ड्स को बालोचना में भारतीय विचार-धारा को ही बहती हुई पाते हैं। कुन्तक की बातों को हो अाज वाल्टर पेटर कह रहे हैं। हम भारतीयों के लिए यह गौरव की बात है। भले ही अपने को भूले हुए नवीन भावुक इस भारतीय भावना को भी भूल बैठे हों। प्रगतिवादी समीक्षकों को इसकी समीक्षावा परीक्षा करनी चाहिये। भूमिका के वण्यं विषयों को संक्षिप्त करने की कामना रखने पर भी कुछ विषयों ने लेख का रूप धारण कर लिया है। यह आवश्यक इसलिए समझा गया कि जिज्ञासुओं को इस विषय का विशेष रूप से कुछ ज्ञान हो जाय । इस प्रकार की वृद्धि से यह भूमिका भी छोटी-सी पुस्तक हो गयी है। ___ भूमिका में उन्हीं विषयों के कुछ शीर्षक पाठक पायेंगे जिनका वर्णन मूल पुस्तक में है। पर वे शोर्षक-मात्र हो एक हैं, उनके अन्तर्गत आलोचना के रूप में नवीन विचारों का समावेश किया गया है। मूल पुस्तक में उनके लिए यथेष्ट अवसर नहीं था। यद्यपि सर्वत्र इसका निर्वाह नहीं हो सका है। क्यों कि स्थान-स्थान पर समीक्षा को भी चाशनी चखने को मिलेगी। आप चाहें तो इनको भी मूल पुस्तक का घरक प्रश ही समझ लें।