पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/४३

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अलंकार आदि सहायक थ । समस्यापूात भा एक प्रकार का काव्यकौशल ही था, जिससे यह भी कलाओं मे पैठ गयी। सारांश यह कि सहृदयों के मनोविनोदार्थ जो कवि का रचना-कौशल था, वह कलाओं मे गिन लिया गया। इस प्रकार काव्य कला नहीं हो सकता। काव्य और कला दो भिन्न वस्तुएँ हैं। विवेचन के अनुसार काव्य विद्या है और कला उपविद्या, भले ही कलाप्रो मे काव्य की गणना क्यों न कर ली जाय । हमें यह मानना होगा कि काव्य मे कलापक्ष है, पर काव्य कला नहीं है। भामह ने कला को काव्य का एक विषय माना है ।' उनके मतानुसार काव्य की विस्तृति के लिए कला-संबंधी विषय भी उपयोगी हो सकते है। विशेषतः भारतीय दृष्टिकोण से 'कला' शब्द का प्रयोग संगीत और शिल्प के अर्थ में ही किया जाता है। शिल्प के अन्तर्गत चित्र आदि की गणना है । कला का दार्शनिक लक्ष्य है आत्म-स्वरूप का साक्षात्कार तथा परमात्म-तत्त्व की ओर उन्मुख होना; अतः कहा गया है कि "कला का जो भोगरूप है वह बंधन है और जो परमानन्द-प्राप्तिकारक है वही कला यथार्थ कला है । कला अस्थिर जीवन को स्थिरता प्रदान करती है । जीवन के क्षणिक सौन्दर्य को चिरकालिक बना देती है। हेमिल्टन ने जो कहा है उसका आशय यह है कि "शिल्पी सौन्दर्य-विलासी रूप-रचयिता है । जिस सत्य को उसने अन्तर में अनुभूत किया है, उसको बाहर स्थिरता प्रदान करता है। उसकी व्यक्तिगत अनुभूति एकान्ततः व्यक्तिमूनक नहीं। वह एक ओर तो विशेष व्यक्ति है, दूसरी ओर निर्विशेष । वह विशेष को निर्विशेष बनाकर वस्तु-रूप मे ऐसा मूर्त स्वरूप दे देता है कि वह सर्वजन-संवेद्य हो जाता है।"४ अतः, कलाकार का काम हृदय के रस से स्थिर रूप-रचना है और वही उसकी कला है। १ न स शब्दो न तद्वाच्य न सा विद्या न सा कला। जायते यन्न काव्यांगमहो भारः महान् कवेः|| काव्यालंकार २ नृत्यगीतमभृतयः कलाः कामार्थ संश्रयाः । काव्यालंकार ३ विश्रान्तिर्यस्य सम्मोगे सा कला न कला मता। लीयते परमानन्दे ययात्मा सा परा कला । ४ An artist is one who, through the imposition on his particular material, creates for. himself and potentially for other, a unified contemplative experience highly objective in character.-Poetry and Contemplation,