पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/४५८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

३७७ लक्ष्योपमा पौन वारिवाह पर शम्भु रतिनाह पर, ____ज्यों सहस्रबाहु पर राम द्विजराज हैं। वावा म बंड पर चीता मृग झुण्ड पर "भूषन' वितुण्ड पर जैसे मृगराज हैं। तेज तम अंश पर कान्ह जिमि कंस पर त्यों म्लेच्छ वंश पर सेर सिवराज हैं। यहाँ सिवराज उपमेय के उपमान तो कहे गये, पर उनके साधारण धर्म नहीं कहे गये । इससे लुप्तधर्मा है। लक्ष्योपमा जहाँ उपमानोपमेय की समता के द्योतक शब्दों को न लाकर ऐसे शब्द लाये जायें या उनका ऐसा कथन किया जाय, जिससे उपमेय और उपमान में समतासूचक भाव प्रगट हो, वहाँ लक्ष्योपमा होती है। ___ लक्षणा से काम लेने के कारण इसे लक्ष्योपमा, सुन्दर होने के कारण ललितोपमा और उपमा को संकीर्णता के कारण संकीर्णोपमा भी कहते हैं। . १ कैसा उसका भुवन-विमोहन वेष था। झेंप रही थी बदन देखकर चन्द्रिका । २ बंकिम-म्र-प्रहरण पालित युग नेत्र से थे कुरंग भी आँख लड़ा सकते नहीं। कुसुम यहाँ झेप रही थी और लड़ा सकते नहीं से उपमानोपमेय की समता का भाव प्रकट है । यह ढंग पुराना है। ३ चिढ़ जाता था वसन्त का कोकिल भी सुनकर वह बोली, सिहर उठा करता था मलयज इन श्वासों के मलय सौरम से। प्रसाद इनमें चिढ़ जाता था, सिहर उठता था, श्रादि शब्द ऐसे हैं, जो उपमा का काम करते हैं । इनमें लाक्षणिक चमत्कार भी अपूर्व है। अर्थाल कारों के प्राणभूत इसी उपमा पर अनेक अलंकारों को सृष्टि हुई है। इसीसे अप्पयदीक्षित कहते हैं कि 'काव्य की रंगभूमि में विभिन्न भूमिका के भेद से नाना रूपों में श्राकर नृत्य करती हुई उपमा-नये काव्य-मर्मज्ञों का मनोरंजन करती है।' - १ उपमैषा शैलूषी संप्राप्ता चित्रभूमिकाभेदात् । रजति काव्यरंगे नृत्यति तद्विदा चेतः। -चित्रमीमांसा