पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/४६

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बोव्य जीवन ही है । जीवन में कुत्सित और प्रशंसित दोनों प्रकार की बाते हो सकती हैं। साहित्यिक किसी भी घटना को अपनी कल्पना के अनुकूल परिवर्तित कर सुन्दर बना देता है कि वह सहृदयों का उपभोग्य हो जाता है। इसलिये नही कि वास्तवता ( Realism ) के नाम पर वह विलास-लालसा को उद्दीपित करे, उच्छ,ङ्खलता का प्रचार करे । साहित्य का यह उद्देश्य नहीं और यह भी उसका उद्देश्य नहीं कि वह नौति-प्रचार, उपदेशदान तथा धर्मोपदेश का ठीका ले ले। किमचन्द्र का कहना है कि "कवि संसार के शिक्षक हैं। किन्तु नीति की व्याख्या करके शिक्षा नहीं देते। वे सौन्दर्य की चरम सृष्टि करके संसार की चित्त- शुद्धि करते है । यही सौन्दर्य की चरमोत्कर्षसाधक सृष्टि काव्य का मुख्य उद्देश्य है। पहला गौण और दूसरा मुख्य है ।" प्रेमचन्द के शब्दो में "साहित्य हमारे जीवन को स्वाभाविक और सुन्दर बनाता है । दूसरे शब्दों में उसीकी बदौलत मन का संस्कार होता है । यही उसका मुख्य उद्देश्य है।" कवि आडेन ( Auden) काव्य का कर्तव्य उपदेश देना नहीं मानता, तथापि अच्छे-बुरे से हमें सचेत कर देना साहित्य का कर्तव्य या उद्देश्य या श्रादर्श अवश्य मानता है।' 'कला कला के लिए' जैसा ब्रडले का एक प्रबन्ध है 'काव्य काव्य के लिए' (Poetry Poetry's sake)। इसका प्रथम तो यह भाव प्रतीत होता है कि कविता किसी लक्ष्य का साधन नहीं है, वह स्वयं ही लक्ष्य है। दूसरा यह कि कविता कविता है। इसलिए इसका उपयोग होना चाहिये। इसका अपना स्वाभाविक मूल्य ही इसका असल काव्य महत्त्व है। कविता का बाह्य महत्त्व भी हो सकता है। हम इसे धर्म या संस्कृति के साधन के रूप में ग्रहण कर सकते हैं, क्योंकि यह मनोभावों को या तो कोमल बनाती है या शिक्षा प्रदान करती है या यश देती है या प्रात्मसन्तोष प्रदान करती है । यह सब कुछ ठीक है । इन सब उद्देश्यों से भी कविता महत्त्व रखती है ; किन्तु यही कविता का यथार्थ महत्त्व नहीं हो सकता। वह महत्त्व काल्पनिक अनुभूतियों को तृप्त करता है और अन्तर के द्वारा ही निर्धारित किया जा सकता है। ब्रडले की व्याख्या का ही यह सार है। डी० एच० लोरेन्स की भी ऐसी ही एक उक्ति है, 'कला केवल मेरे लिए है। (Art for my sake)। तुलसीदास के शब्दों में 'स्वान्तः सुखाय' इसे कह सकते है। यह उक्ति किसी दृष्टि से सत्य हो सकती है, पर यथार्थ नहीं है। एक तो तुलसी की 'उपजहि अनत श्रनत छवि लहहीं' की उक्ति से वह निरर्थक सिद्ध हो जाती है। दूसरी बात यह कि कवि की कविता कवि हो तक रह गयी तो उसका कुछ महत्त्व नहीं रहा। कवि अपने लिए रचना करता है, उसमें रमता है, उसका आनन्द लेता १. Poetry is not concerned with telling people what is to do but with extending our knowledge of good and evil. का०८०-३