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पृष्ठ:काव्य दर्पण.djvu/४६०

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अनन्वय स्मरण मृगन के लोचन से लोचन हैं रोचन ये मृग दृग इनहीं से सोहे पलापल हैं। 'सूरति' निहारि देखी नीके ऐरी प्यारीजू के कमल से नैन अरु नैन से कमल हैं। ३ अनन्वय ( Self Comparison ) जहाँ ( उपमान के अभाव में ) एक ही वस्तु को उपमान और उपमेय भाव से कहा जाय वहाँ यह अलंकार होता है। उस काल दोनों में परस्पर युद्ध वह ऐसा हुआ। है योग्य बस कहना यही अद्भुत वही ऐसा हुआ। गुप्त उस युद्ध के ऐसा वही युद्ध था, यह जो उक्त है उससे इसमें परस्पर अनन्व- वात्मक उपमोपमेय भाव है। ४ स्मरण ( Reminiscence ) पूर्वानुभूत वस्तु के समान किसी वस्तु ( उपमान ) के देखने आदि से उसका ( उपमेय) जहाँ स्मरण हो वहाँ स्मरण अलंकार होता है। देखता हूँ जब पतला इन्द्रधनुषी हलका रेशमी घूघट बादल का खोलती है कुमुद-कला तुम्हारे मुख का ही तो ध्यान मुझे तब करता अन्तर्धान । -पन्त यहां पूर्वदृष्ट मुख का कुमुद-कला से बादल के रेशमी घूघुट के हटने का दृश्य देखकर स्मरण हो पाता है। मैं पाता हूँ मधुर ध्वनि में कूजने में खगों के मोठी तानें परम प्रिय की मोहिनी वंशिका की ।-अरिऔध यहाँ पक्षियों का कलरव सुनकर कृष्ण की वंशी-ध्वनि की स्मृति हो पाती है। छ देती है मृदु पवन जो पास आ गात मेरा तो हो जाती परम सुधि है श्याम प्यारे करों की।-हरिऔध इनमें अनुभवात्मक स्मरण है।